मीडिया और बांग्लादेश सरकार के कहने पर हम ये मान भी लें कि बंगलादेश में कुरान की आयतें नहीं पढ़ सकने वाले ग़ैर-मुस्लिमों की हत्या करने वाले आतंकी लड़के ज़ाकिर नाइक की मज़हबी तक़रीरों से प्रभावित थे,तो यह बात हमें कौन बताएगा कि बांग्लादेश में ईद की नमाज पढ़ रहे नमाजियों को मारने वाले, दो दिनों पहले मदीने के पवित्र मस्ज़िद में धमाके करने वाले और रमज़ान के पवित्र महीने में इराक सहित कई देशों में सैकड़ों मुसलमानों की हत्या करने वाले आतंकी किस शख्स या किस मज़हब से प्रभावित थे?
मैं इस्लाम और कुरआन को समझने के लिए भारतीय इस्लामिक विद्वान डॉ. जाकिर नाइक को अरसे से सुनता रहा हूं। मुझे तो उनकी तक़रीरें धार्मिक ही लगीं, धार्मिक भावनाएं भड़काने वाली कभी नहीं। उनकी कुछ बातों से असहमत होते हुए भी कहना चाहूंगा कि जैसे हिन्दू साधुओं-साध्वियों-संतों-योगियों को अपने धर्म का प्रचार करने का अधिकार है, जाकिर साहब जैसे लोगों को भी है।
देश-दुनिया के तमाम मुसलमानों को दहशतगर्द साबित करने पर तुले हुए हैं। हमारी समझ में यह मोटी-सी बात क्यों नहीं आ रही है कि हमारे अपने देश में हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच फ़ासले को उस हद तक बढ़ाने की साज़िशें चल रही हैं कि देश में गृहयुद्ध की नौबत आ जाए।
जाहिर है यदि इसमें कोई साजिश है, तो उसे सामने आना चाहिए, लेकिन यदि ऐसा नहीं है तो भी फिर ये कोई गहरी साज़िश है, जो देश के सांप्रदायिक सद्भाव के प्रति हमें चौकन्ना करती है , क्योंकि जनता को याद रखना चाहिए कि विद्वेष की कमाई से और दंगों की मलाई से शातिर राजनेताओं को, सरहद पार पाकिस्तान में बैठे दहशतगर्दों को और कुछ अन्य बिके हुए भ्रष्ट लोगों को ही फायदा होगा
जिन्हें अलग-थलग कर उनसे लड़ने के बज़ाय हम बेवज़ह लेकिन जाकिर नाइक को लेकर एकतरफा फैसला सुनाना हर तरह से जल्दबाजी होगी। जबकि नुकसान उठाना होगा आम जनता को, जिनके दिलों में एक दूसरे के प्रति धर्म के नाम पर एक ऐसी नफरत की आग जलेगी, जिसमें संभव हो देश ही झुलस जाए। बारहाल, सुरक्षा एजेंसियां और सरकार जाकिर नाइक को लेकर पूरी जांच कर रही है और सतर्कता भी बरत रही है, लिहाजा जो भी सच है, वह सामने आएगा,
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