
इलाहाबाद के थाना कर्नलगंज में रखे बरतानवी पुलिस के अपराध रजिस्टर को देखें तो यह शक पैदा होता है. तत्कालीन पुलिस दस्तावेज़ कहते हैं कि उस सुबह क़रीब सुबह 10.20 पर आज़ाद एल्फ़्रेड पार्क में मौजूद थे. पुलिस के मुख़बिरों ने उनके वहां मौजूद होने की जानकारी दे दी थी.
इलाहाबाद के संग्रहालय में चंद्रशेखर आज़ाद की वह पिस्तौल रखी है, जो 27 फ़रवरी 1931 की सुबह आज़ाद के हाथों में थी. मान्यता है कि इसी पिस्तौल से निकली गोली ने आज़ाद की जान ली थी. लेकिन पुलिस के कागज़ ऐसा नहीं कहते.
उस दौर के ज़्यादा दस्तावेज़ मौजूद नहीं हैं. बाद में आज़ादी के आंदोलन पर लिखने वाले यह साफ़ नहीं करते कि आख़िर उस सुबह कैसे घटनाक्रम तेज़ी से बदला था. भारत की अपराध प्रणाली अभी भी कमोबेश बरतानवी तौर-तरीक़ों पर ही आधारित है.
मतलब यह कि अभियुक्त ने पुलिस पार्टी पर क़ातिलाना हमला किया, जिसके जवाब में पुलिस ने गोली चलाई और पुलिस की आत्मरक्षार्थ कार्रवाई में अभियुक्त की मौत हो गई.
मतलब यह कि अभियुक्त ने पुलिस पार्टी पर क़ातिलाना हमला किया, जिसके जवाब में पुलिस ने गोली चलाई और पुलिस की आत्मरक्षार्थ कार्रवाई में अभियुक्त की मौत हो गई.
मान्यता है कि जब आज़ाद के पास एक गोली बची, तो उन्होंने ख़ुद को गोली मार ली. मगर सरकारी रिकॉर्ड इसकी तसदीक नहीं करता. इलाहाबाद के ज़िलाधिकारी परिसर में मौजूद फ़ौजदारी के अभिलेखागार में 1970 से पहले का दस्तावेज़ नहीं है.
आज़ाद के ख़िलाफ़ थाना कर्नलगंज में बरतानवी पुलिस ने धारा-307 लगाते हुए पुलिस पार्टी पर जानलेवा हमला करने का केस दर्ज किया था. उर्दू में दर्ज यही अपराध रजिस्टर अकेला दस्तावेज़ है, जिससे कोई जानकारी मिलती है. प्रतिवादी के तौर पर चंद्रशेखर आज़ाद और एक अज्ञात व्यक्ति का ज़िक्र है.
आज़ाद के ख़िलाफ़ थाना कर्नलगंज में बरतानवी पुलिस ने धारा-307 लगाते हुए पुलिस पार्टी पर जानलेवा हमला करने का केस दर्ज किया था. उर्दू में दर्ज यही अपराध रजिस्टर अकेला दस्तावेज़ है, जिससे कोई जानकारी मिलती है. प्रतिवादी के तौर पर चंद्रशेखर आज़ाद और एक अज्ञात व्यक्ति का ज़िक्र है.
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