क्या ज़रूरत है मदरसों की पढ़ाई में बदलाव की


एक जुलाई को ढाका में हुए ख़ौफनाक़ हमले के बाद जब ऐसी ख़बरें आईं कि चरमपंथियों में से एक उनसे प्रभावित था, तब से भारत सरकार हरकत में आ गई है. जानकारी के अनुसार बांग्लादेश में डॉक्टर नाइक बहुत चर्चित हैं.
बीते कुछ दिनों से ये मांग उठ रही है कि उन्हें धार्मिक आधार पर नफ़रत फैलाने और कट्टरपंथी धार्मिक सोच को बढ़ावा देने के आरोप में गिरफ़्तार किया जाए. पूरी दुनिया में इस्लाम के नाम पर बढ़ती हुई चरमपंथी घटनाओं के मद्देनज़र मुसलमानों की धार्मिक शिक्षा, ख़ासकर इस्लामी मदरसों की शिक्षा पर ध्यान केंद्रित किया जाने लगा है.
भारत में देवबंद और नदवा जैसे सुन्नी मुसलमानों के कई बड़े मज़हबी संस्थान हैं जहां हज़ारों छात्र धार्मिक शिक्षा हासिल करते हैं. हां शिक्षा हासिल करने वाले छात्र देशभर की लाखों मस्जिदों में इमामत करते हैं और हज़ारों छोटे-बड़े मदरसों में छात्रों को पढ़ाते हैं. देवबंद, नदवा या दूसरे बड़े धार्मिक संस्थान वैचारिक तौर पर दहशतगर्दी के ख़िलाफ़ रहे हैं और ख़ुदक़श हमलों और दहशतगर्दी के ख़िलाफ़ फ़तवे भी जारी कर चुके हैं.
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वहां शिक्षा हासिल कर रहे छात्र जब तक शिक्षा पूरी करते हैं, तब तक वो अपने पहनावे, हुलिए और बोलचाल से अलग हो चुके होते हैं. ऐसे कई संस्थानों में बताया जाता है कि पश्चिमी संस्कृति और सभ्यता मुसलमानों के लिए किसी काम की नहीं है.ये भी बताया जाता है कि उनका समाज, चरित्र और नैतिक मूल्यों से खाली है और उनकी कामयाबियां झूठी हैं.
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सवाल बहुत अहम है कि क्या धार्मिक घृणा और कट्टरपंथी सोच पर क़ाबू पाने के लिए इन धार्मिक संस्थानों के पाठ्यक्रमों पर सरकार का नियंत्रण होना चाहिए? वो देश के मुसलमानों के मन में पिछड़ेपन की एक सोच पैदा करते हैं. उनका नज़रिया धार्मिक मुसलमानों को लोकतंत्र और दूसरे मज़हबी फ़िरकों से मेलजोल करने से रोकता है.
दुनिया में इस्लाम के नाम पर बढ़ती हुई दहशतगर्दी के मद्देनज़र ये संस्थान भी सुरक्षा एजेंसियों और सरकार की नज़रों में रहे हैं.

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एक जुलाई को ढाका में हुए ख़ौफनाक़ हमले के बाद जब ऐसी ख़बरें आईं कि चरमपंथियों में से एक उनसे प्रभावित था, तब से भारत सरकार हरकत में आ गई है. जानकारी के अनुसार बांग्लादेश में डॉक्टर नाइक बहुत चर्चित हैं.
बीते कुछ दिनों से ये मांग उठ रही है कि उन्हें धार्मिक आधार पर नफ़रत फैलाने और कट्टरपंथी धार्मिक सोच को बढ़ावा देने के आरोप में गिरफ़्तार किया जाए. पूरी दुनिया में इस्लाम के नाम पर बढ़ती हुई चरमपंथी घटनाओं के मद्देनज़र मुसलमानों की धार्मिक शिक्षा, ख़ासकर इस्लामी मदरसों की शिक्षा पर ध्यान केंद्रित किया जाने लगा है.
भारत में देवबंद और नदवा जैसे सुन्नी मुसलमानों के कई बड़े मज़हबी संस्थान हैं जहां हज़ारों छात्र धार्मिक शिक्षा हासिल करते हैं. हां शिक्षा हासिल करने वाले छात्र देशभर की लाखों मस्जिदों में इमामत करते हैं और हज़ारों छोटे-बड़े मदरसों में छात्रों को पढ़ाते हैं. देवबंद, नदवा या दूसरे बड़े धार्मिक संस्थान वैचारिक तौर पर दहशतगर्दी के ख़िलाफ़ रहे हैं और ख़ुदक़श हमलों और दहशतगर्दी के ख़िलाफ़ फ़तवे भी जारी कर चुके हैं.
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वहां शिक्षा हासिल कर रहे छात्र जब तक शिक्षा पूरी करते हैं, तब तक वो अपने पहनावे, हुलिए और बोलचाल से अलग हो चुके होते हैं. ऐसे कई संस्थानों में बताया जाता है कि पश्चिमी संस्कृति और सभ्यता मुसलमानों के लिए किसी काम की नहीं है.ये भी बताया जाता है कि उनका समाज, चरित्र और नैतिक मूल्यों से खाली है और उनकी कामयाबियां झूठी हैं.
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सवाल बहुत अहम है कि क्या धार्मिक घृणा और कट्टरपंथी सोच पर क़ाबू पाने के लिए इन धार्मिक संस्थानों के पाठ्यक्रमों पर सरकार का नियंत्रण होना चाहिए? वो देश के मुसलमानों के मन में पिछड़ेपन की एक सोच पैदा करते हैं. उनका नज़रिया धार्मिक मुसलमानों को लोकतंत्र और दूसरे मज़हबी फ़िरकों से मेलजोल करने से रोकता है.
दुनिया में इस्लाम के नाम पर बढ़ती हुई दहशतगर्दी के मद्देनज़र ये संस्थान भी सुरक्षा एजेंसियों और सरकार की नज़रों में रहे हैं.


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