
लेकिन हर बार आश्वासन का लालीपॉप थमाकर उनकी आवाज को दबाने की कोशिश की जाती रही है। न शहर की नियमित सफाई हो रही है और न ही नालियों को साफ किया जा रहा है। सड़कों पर जगह-जगह लगे गंदगी के ढेर और सड़ रहीं नालियां इसकी गवाही दे रहे हैं। लेकिन माननीयों को इसकी जरा भी परवाह नहीं है कि शहर सड़े या जनता बीमारियों की गिरफ्त में आए।
वर्ष 2011 की गणना के मुताबिक शहर की आबादी एक लाख 95 हजार 827 है। इसके सापेक्ष सफाई कर्मचारियों की संख्या एक हजार से अधिक होनी चाहिए थी, जबकि पालिका के पास स्थाई, संविदा और ठेका कर्मचारियों को मिलाकर कुल 491 सफाई कर्मचारी हैं। इनमें से 121 पर माननीयों की कृपा बनी हुई।
वह सफाई का काम छोड़कर माननीय और अफसरों के घरों और दफ्तरों पर पानी पिलाने का काम कर रहे हैं या फिर पालिका के वाहनों पर तैनात हैं। जबकि कुछ पालिका दफ्तर में बाबू की कुर्सी पर जमे हुए हैं। अब सफाई का जिम्मा 114 कर्मचारियों के कंधों पर है। 31 वार्डों में काम करना तक मुश्किल है। सफाई कर्मचारियों के संगठन लगातार आवाज उठाते रहे हैं,
सफाई कर्मचारियों का ब्यौरा
स्थाई-240
ठेका-120
संविदा-131
संसाधन-
ट्रैक्टर-ट्राली-09
जेसीबी-01
लोडर-04
डंपर-01
टैंपो-13
पानी के टेंकर-03
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