
दलितों पर हो रहे अत्याचार को लेकर दलितों का फूटा गुस्सा गुजरात के एक जिला कलेक्टर के दफ्तर में और सड़कों दलितों ने मरी हुई गायों को पर फेंक कर विरोध का एक नया इतिहास लिख दिया। सवर्ण हिंदुओं की पवित्र गाय, चाहे वह मरी हुई ही क्यों न हो, का अपमान करने की जुर्रत इससे पहले शायद ही किसी ने की थी।
आपको बतादें भारत में दलितों की आबादी क़रीब 16 फ़ीसदी है। इतिहासकार दलितों को भारत का मूल निवासी बताते हैं। ऐतिहासिक और सामाजिक तौर पर वह हिंदू ही हैं, लेकिन हिंदुओं की जाति व्यवस्था में उन्हें सभी जातियों से नीचा करार दिया गया। गंदगी के सारे काम उन्हें सौंप दिए गए। उन्हें अछूत घोषित कर दिया गया।
भारत की आज़ादी के बाद जब एक लोकतांत्रिक संविधान अपनाया गया तो दलितों को भी बराबर के अधिकार मिले। देश के दूरदर्शी और लोकतांत्रिक नेताओं ने सदियों के अत्याचार और उत्पीड़न को खत्म करने के लिए दलितों को संसद, विधानसभाओं, शैक्षणिक संस्थानों और नौकरियों में आरक्षण दिया ताकि वह ऊपर आ सकें।
आज़ादी के 69 साल बाद आरक्षण की बदौलत दलित ऊपर आ रहे हैं। पहली बार दलितों में एक प्रभावशाली, जागरूक और शिक्षित मध्य वर्ग पैदा हुआ है। फ़ेसबुक, व्हाट्सऐप, यूट्यूब, ट्विटर और इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया ने क्रांति पैदा की है।
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