
इराक युद्ध को लेकर हुई ब्रिटिश जांच में तत्कालीन प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर की कड़ी निंदा की गई है। कहा गया है कि उन्होंने बिना संतोषजनक कारण और तैयारी के ब्रिटेन की सेनाओं को अमेरिकी नेतृत्व वाले आक्रमण में भेजा। ब्लेयर ने इस पर अपनी सफाई में कहा है कि उन्होंने अच्छे उद्देश्य के लिए सेनाओं को इराक भेजने का निर्णय लिया था।
वह नहीं मानते हैं कि उस समय के निर्णय के चलते इराक और उसके पड़ोसी देश आज आतंकवाद की समस्या से घिरे हुए हैं।वह अब भी मानते हैं कि इराकी तानाशाह सद्दाम हुसैन को हटाया जाना जरूरी था। जांच के निष्कर्षों को सार्वजनिक करते हुए कमेटी के चेयरमैन जॉन चिलकॉट ने कहा कि सैन्य कार्रवाई कानूनी आधार पर की जाती है, न कि व्यक्तिगत इच्छा पर।
रिपोर्ट कहती है कि मार्च 2003 में सद्दाम से ऐसा कोई खतरा नहीं था जिसके चलते उन्हें तत्काल सत्ता से हटाना जरूरी था। रिपोर्ट के मुताबिक यह निर्णय ब्लेयर ने आठ महीने पहले जॉर्ज डब्ल्यू बुश को दिए गए उस आश्वासन की वजह से लिया गया, जिसमें उन्होंने हर फैसले में साथ होने की बात कही थी।

जिस इराकी आदमी ने चौराहे पर लगी सद्दाम हुसैन की प्रतिमा को घन से तोड़ा था, आज वही आदमी सद्दाम के शासन को अच्छा बता रहा है। कह रहा है कि जॉर्ज डब्ल्यू बुश और टोनी ब्लेयर ने अपनी जिद में पूरा देश बर्बाद कर दिया। कादिम हसन अल जबूरी नाम के इस आदमी के कृत्य को पूरी दुनिया ने टेलीविजन पर देखा था और इस दृश्य को सद्दाम के प्रति जनता के गुस्से के रूप में प्रदर्शित किया गया था।
गब्बन ने बगदाद में प्रेस कांफ्रेंस के दौरान इस्तीफे की घोषणा की। उन्होंने इसका वीडियो भी अपने फेसबुक पर पोस्ट किया है। उन्होंने कहा कि विस्फोटकों से भरी कार पूर्वी प्रांत दियाला से आई थी। इसके लिए राजधानी की सुरक्षा में तैनात बलों के बीच तालमेल की कमी जिम्मेदार है।
युद्ध और उसके बाद की स्थितियों के लिए कोई योजना तैयार नहीं की गई थी। रिपोर्ट सात साल की जांच के बाद आई है। इराक युद्ध में मारे गए ब्रिटिश सैनिकों के परिजनों ने कहा है कि वे जांच रिपोर्ट का अध्ययन करेंगे।
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