सऊदी अरब में दहशतगर्दी, मुस्लिम देशों के ख़िलाफ़ साज़िश...


रोज़नामा ‘एक्सप्रेस’ का संपादकीय है- सऊदी अरब में दहशतगर्दी, मुस्लिम देशों के ख़िलाफ़ साज़िश. अख़बार लिखता है कि इन हमलों का क्या मक़सद था और किन संगठनों ने इन्हें अंजाम दिया ये तो जांच के बाद ही पता चलेगा,
लेकिन सऊदी अरब में होने वाले हमले अफ़सोसनाक हैं, ख़ासकर मदीना मस्जिद के पास हुए धमाके से मुस्लिम जगत में चिंता की लहर दौड़ गई है. अख़बार लिखता है कि कई हल्कों में क़यास लग रहे हैं कि ग़ैर मुस्लिम ताक़तें इस्लामिक स्टेट जैसे चरमपंथी संगठनों को एक ख़ास योजना के तहत बढ़ावा दे रही हैं ताकि मुस्लिम देशों को लड़ाई के बिना ही तबाह किया जा सके.160311042244_isis_flag_512x288_getty_nocredit
उधर ‘नवा-ए-वक़्त’ लिखता है कि इस वक़्त पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान, तुर्की, बांग्लादेश, ईरान और मुसलमानों के लिए पवित्र सऊदी अरब की धरती इस्लामिक स्टेट के ख़ास तौर से निशाने पर हैं. अख़बार लिखता है कि अगर दहशतगर्द संगठनों ने रमज़ान के मुबारक महीने में मुसलमानों का ख़ून बहाया है तो उनकी कार्रवाइयों का इस्लाम से कोई नाता नहीं जोड़ा जा सकता है.
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मुसलमान देशों को सलाह देता है कि वो अपनी आंतरिक और विदेश नीति पर नए सिरे से विचार करें. अख़बार लिखता है कि यदि मुस्लिम देश असल मायनों में एकता और सहमति दिखाएंगे तो 'दुश्मन' अपने इरादों को पूरा नहीं कर पाएंगे.
दूसरी तरफ ‘जंग’ ने भारत प्रशासित कश्मीर में ईद के दिन अलगाववादी नेताओं को नज़रबंद करने पर पाकिस्तान की आपत्तियों को अपने संपादकीय में उठाया है. अख़बार लिखता है कि ईद के मौक़े पर तो गंभीर अपराधों में सज़ा काट रहे क़ैदियों को भी अपने परिवारों से मिलने दिया जाता है
लेकिन अधिकारियों ने ईद के मौक़े पर कश्मीर नेताओं की आज़ादी छीन ली ताकि वो आम लोगों से न मिल सकें. वहीं ‘जसारत’ ने अपने संपादकीय में इस बात का शुक्र मनाया है कि पाकिस्तान में ईद का दिन बिना किसी बड़ी खराबी के गुजर गया,160708104358_zakir_naik_facebook_624x351_facebook
मुस्लिम उपदेशक ज़ाकिर नाइक पर 'हमारा समाज' का संपादकीय है- ज़ाकिर नाइक की घेराबंदी. अख़बार कहता है कि ये दावे किस आधार पर किए जा रहे हैं कि ढाका में जवाबी कार्रवाई में मारे गए चरमपंथी ज़ाकिर नाइक की सोच से प्रभावित थे?
ज़ाकिर नाइक को शांति का संदेश देने वाला व्यक्ति बताते हुए अख़बार कहता है कि उनका पीस टीवी बरसों से अंग्रेजी, उर्दू और बांग्ला में प्रसारित हो रहा है लेकिन कभी बांग्लादेश की सरकार ने उस पर पाबंदी नहीं लगाई.
अख़बार के अनुसार बात तो यह है कि ज़ाकिर नाइक का टीवी कार्यक्रम काफ़ी समय से बहुत से लोगों की आंखों में खटक रहा था जिसके जरिए वो इस्लाम का प्रचार करते हैं, और अच्छे खासे पढ़े लिखे लोगों को इस्लाम में दाख़िल कराते हुए दिखते हैं.


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रोज़नामा ‘एक्सप्रेस’ का संपादकीय है- सऊदी अरब में दहशतगर्दी, मुस्लिम देशों के ख़िलाफ़ साज़िश. अख़बार लिखता है कि इन हमलों का क्या मक़सद था और किन संगठनों ने इन्हें अंजाम दिया ये तो जांच के बाद ही पता चलेगा,
लेकिन सऊदी अरब में होने वाले हमले अफ़सोसनाक हैं, ख़ासकर मदीना मस्जिद के पास हुए धमाके से मुस्लिम जगत में चिंता की लहर दौड़ गई है. अख़बार लिखता है कि कई हल्कों में क़यास लग रहे हैं कि ग़ैर मुस्लिम ताक़तें इस्लामिक स्टेट जैसे चरमपंथी संगठनों को एक ख़ास योजना के तहत बढ़ावा दे रही हैं ताकि मुस्लिम देशों को लड़ाई के बिना ही तबाह किया जा सके.160311042244_isis_flag_512x288_getty_nocredit
उधर ‘नवा-ए-वक़्त’ लिखता है कि इस वक़्त पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान, तुर्की, बांग्लादेश, ईरान और मुसलमानों के लिए पवित्र सऊदी अरब की धरती इस्लामिक स्टेट के ख़ास तौर से निशाने पर हैं. अख़बार लिखता है कि अगर दहशतगर्द संगठनों ने रमज़ान के मुबारक महीने में मुसलमानों का ख़ून बहाया है तो उनकी कार्रवाइयों का इस्लाम से कोई नाता नहीं जोड़ा जा सकता है.
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मुसलमान देशों को सलाह देता है कि वो अपनी आंतरिक और विदेश नीति पर नए सिरे से विचार करें. अख़बार लिखता है कि यदि मुस्लिम देश असल मायनों में एकता और सहमति दिखाएंगे तो 'दुश्मन' अपने इरादों को पूरा नहीं कर पाएंगे.
दूसरी तरफ ‘जंग’ ने भारत प्रशासित कश्मीर में ईद के दिन अलगाववादी नेताओं को नज़रबंद करने पर पाकिस्तान की आपत्तियों को अपने संपादकीय में उठाया है. अख़बार लिखता है कि ईद के मौक़े पर तो गंभीर अपराधों में सज़ा काट रहे क़ैदियों को भी अपने परिवारों से मिलने दिया जाता है
लेकिन अधिकारियों ने ईद के मौक़े पर कश्मीर नेताओं की आज़ादी छीन ली ताकि वो आम लोगों से न मिल सकें. वहीं ‘जसारत’ ने अपने संपादकीय में इस बात का शुक्र मनाया है कि पाकिस्तान में ईद का दिन बिना किसी बड़ी खराबी के गुजर गया,160708104358_zakir_naik_facebook_624x351_facebook
मुस्लिम उपदेशक ज़ाकिर नाइक पर 'हमारा समाज' का संपादकीय है- ज़ाकिर नाइक की घेराबंदी. अख़बार कहता है कि ये दावे किस आधार पर किए जा रहे हैं कि ढाका में जवाबी कार्रवाई में मारे गए चरमपंथी ज़ाकिर नाइक की सोच से प्रभावित थे?
ज़ाकिर नाइक को शांति का संदेश देने वाला व्यक्ति बताते हुए अख़बार कहता है कि उनका पीस टीवी बरसों से अंग्रेजी, उर्दू और बांग्ला में प्रसारित हो रहा है लेकिन कभी बांग्लादेश की सरकार ने उस पर पाबंदी नहीं लगाई.
अख़बार के अनुसार बात तो यह है कि ज़ाकिर नाइक का टीवी कार्यक्रम काफ़ी समय से बहुत से लोगों की आंखों में खटक रहा था जिसके जरिए वो इस्लाम का प्रचार करते हैं, और अच्छे खासे पढ़े लिखे लोगों को इस्लाम में दाख़िल कराते हुए दिखते हैं.



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