आखिर किस हद तक और नीचे गिरेगी मानसिकता






कृष्ण कुमार रामानन्दी

कहते हैं, भारत कभी विश्वगुरु था। अब भारत को फिर से विश्वगुरु बनाने का ख्वाब देखा जा रहा है। भारत को सोने की चिड़िया यहां की संस्कृति की वजह से नहीं कहा गया, बल्कि भारत देश की धरती सोना उगलती है। धरती के नीचे तमाम प्रकार की महंगी धातुएं दफन हैं। हर मौसम, हर पदार्थ, हर प्रकार की जड़ी बूटियां आदि मौजूद हैं। यही कारण था कि भारत पर हमेशा विदेशियों की नजरें गढ़ी रहीं। आर्यों से लेकर अंग्रेजों तक लाखों वर्षों तक भारत की धरती ने विदेशी आक्रमणों का सामना किया है। देश में हजारों जातियां ऐसी निवास करती हैं, जिनके पुरखे विदेशी थे। लेकिन हजारों वर्षों तक यहां की धरती का अन्न खाने के बावजूद उनके खून में जरा भी बदलाव नहीं आया है।

दुनिया में भारत ही एक ऐसा देश होगा, जहां आए दिन कोई न कोई बड़ी घटना न होती हो। कभी धर्म के नाम पर सांप्रदायिक दंगे, तो कभी गाय का मांस खाने के नाम पर अखलाक की हत्या कर दी जाती है। जबरन शारीरिक संबंध न बनाने पर कमजोर तबकों की महिलाओं के गुप्तांगों में गन्ना डालकर उन्हें मार दिया जाता है, लेकिन देश की मीडिया और नेताओं को निर्भया तो दिखाई देती है लेकिन कमजोर तबकों की वे महिलाएं दिखाई नहीं देती, जिन पर हर रोज अत्याचार हो रहे हैं। हालही में डा.जाकिर नाईक के उपदेशों को आतंकियों के लिए दुष्प्रेरित करने वाला करार दे दिया गया। हांलाकि भारत में उन्हें क्लीनचिट मिल गई है लेकिन दुर्भाग्यवश आज हमारे देश में एक अकेले जाकिर नाईक नहीं बल्कि दूसरे धर्मों में भी अनेक ऐसे नेता स्वयंभू धर्माेपदेशक व कथित साधू-संत आदि देखे जा सकते हैं जो न केवल दूसरों की भावनाओं को आहत करते हैं बल्कि वैचारिक आतंकवाद का ऐसा जहर भी घोलते हैं।

यहां तक कि अपने भाषणों में खुलकर दूसरे समुदायों के लोगों पर ऐसा प्रहार करते हैं कि सुनने वाले उनके समर्थक आक्रोशित हो कर हिंसक कार्रवाईयों को अंजाम दे बैठते हैं। 
महात्मा गांधी की हत्या भी ऐसे ही एक वैचारिक आतंकवाद का स्वतंत्र भारत का पहला उदाहरण थी। 22 जनवरी 1999 को ऑस्ट्रेलियन मिशनरी ग्राहम स्टेंस तथा उनके 10 व 6 वर्ष के दो छोटे बच्चों को उड़ीसा के क्योझार जिले के मनोहरपुर गांव में बजरंग दल कार्यकर्ता दारा सिंह व उसके साथियों ने उनकी गाड़ी में जिंदा जला दिया। 1980 में सैकड़ों हिंदू-मुसलमानों की नृशंस हत्याएं इसी वैचारिक आतंकवाद का परिणाम थीं। आज भी हमारे देश में दर्जनों स्वयंभू धर्म व देश के स्वयंभू ठेकेदार एक-दूसरे समुदाय के विरुद्ध जहर उगलते रहते हैं। कोई कहता है कि पंद्रह मिनट के लिए देश से पुलिस को हटा लो फिर देखो हम क्या कर गुजरते हैं तो कोई कहता है कि हमने गुजरात, आसाम व उड़ीसा में जो कर दिखाया उसे अल्पसंख्यकों को नहीं भूलना चाहिए। इस प्रकार की उकसावे वाली गैरजिम्मेदाराना बातें आज देश में उन लोगों द्वारा घूम-घूम कर सरेआम की जा रही हैं जो संविधान के रक्षक की भूमिका भी निभा रहे हैं तथा जनता द्वारा निर्वाचित भी किए गए हैं।

 ऐसी भाषणबाजी जो किसी भी समुदाय में आक्रामकता पैदा करती हो और किसी एक समुदाय को दूसरे समुदाय के विरुद्ध भड़काती हो ऐसी भाषणबाजी करने वाले समस्त नेताओं, स्वयंभू उपदेशकों व धमुगुरुओं के विरुद्ध सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का नाजायज फायदा उठाने वाले ऐसे लोगों के भाषणों व उनके सार्वजनिक कार्यक्रमों को प्रतिबंधित कर दिया जाना चाहिए। प्रत्येक सच्चे भारतीय नागरिक को चाहे कि वह किसी भी धर्म अथवा समुदाय से संबंध क्यों न रखता हो यह भलीभांति समझ लेना चाहिए कि किसी भी धर्म अथवा समुदाय को कोई भी व्यक्ति जो अपने जहरीले बयानों के द्वारा हमारी एकता व सद्भाव पर प्रहार करने की कोशिश कर रहा हो वह हमारी धार्मिक स्वतंत्रता के साथ-साथ हमारे देश के सर्वधर्म संभाव रूपी ढांचे का भी बड़ा दुश्मन है। हमें ऐसे लोगों से सचेत रहने की जरूरत है। 

अब ताजा मुद्दा गुजरात का है, जहां गौरक्षा दल के आतातायीओं ने समाज में सड़ने के लिए छोड़ दी जाने वाली मृत गायों के शरीर को उठानेे का काम करने वाले अनुसूचित जाति के चार युवकों को सरेराह गाड़ी से बांधकर पीटा। एक तरफ दलित इस घटना को लेकर आंदोलित थे, वहीं दूसरे स्थानों पर आतातायी अन्य दलितों पर अत्याचार की पराकाष्ठा को पार कर रहे थे। इस मुद्दे को दबाने के लिए एक भाजपा नेता ने दलितों की नेता बहन मायावती की तुलना वेश्या से करके गुजरात के मुद्दे को दबाने का काम किया। 

फिलहाल दोनों मामलों को लेकर देश की राजनीति गरमा चुकी है। लेकिन सवाल उठता है कि क्या दलितों पर अत्याचार करने वाले गौरक्षा दल के कार्यकर्ता किसी धर्मगुरू के उपदेश सुनकर दुष्प्रेरित हुए थे। डा.जाकिर नाईक की तरह इस प्रकरण की भी जांच भी होनी चाहिए। यदि वे आतातायी किसी के उपदेशों से दुष्प्रेरित थे, तो उस धर्मगुरु के खिलाफ भी सख्त कार्रवाई होनी चाहिए, क्योंकि यह देश सभी का है और संविधान में सभी के लिए बराबर अधिकार दिए गए हैं।

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कृष्ण कुमार रामानन्दी

कहते हैं, भारत कभी विश्वगुरु था। अब भारत को फिर से विश्वगुरु बनाने का ख्वाब देखा जा रहा है। भारत को सोने की चिड़िया यहां की संस्कृति की वजह से नहीं कहा गया, बल्कि भारत देश की धरती सोना उगलती है। धरती के नीचे तमाम प्रकार की महंगी धातुएं दफन हैं। हर मौसम, हर पदार्थ, हर प्रकार की जड़ी बूटियां आदि मौजूद हैं। यही कारण था कि भारत पर हमेशा विदेशियों की नजरें गढ़ी रहीं। आर्यों से लेकर अंग्रेजों तक लाखों वर्षों तक भारत की धरती ने विदेशी आक्रमणों का सामना किया है। देश में हजारों जातियां ऐसी निवास करती हैं, जिनके पुरखे विदेशी थे। लेकिन हजारों वर्षों तक यहां की धरती का अन्न खाने के बावजूद उनके खून में जरा भी बदलाव नहीं आया है।

दुनिया में भारत ही एक ऐसा देश होगा, जहां आए दिन कोई न कोई बड़ी घटना न होती हो। कभी धर्म के नाम पर सांप्रदायिक दंगे, तो कभी गाय का मांस खाने के नाम पर अखलाक की हत्या कर दी जाती है। जबरन शारीरिक संबंध न बनाने पर कमजोर तबकों की महिलाओं के गुप्तांगों में गन्ना डालकर उन्हें मार दिया जाता है, लेकिन देश की मीडिया और नेताओं को निर्भया तो दिखाई देती है लेकिन कमजोर तबकों की वे महिलाएं दिखाई नहीं देती, जिन पर हर रोज अत्याचार हो रहे हैं। हालही में डा.जाकिर नाईक के उपदेशों को आतंकियों के लिए दुष्प्रेरित करने वाला करार दे दिया गया। हांलाकि भारत में उन्हें क्लीनचिट मिल गई है लेकिन दुर्भाग्यवश आज हमारे देश में एक अकेले जाकिर नाईक नहीं बल्कि दूसरे धर्मों में भी अनेक ऐसे नेता स्वयंभू धर्माेपदेशक व कथित साधू-संत आदि देखे जा सकते हैं जो न केवल दूसरों की भावनाओं को आहत करते हैं बल्कि वैचारिक आतंकवाद का ऐसा जहर भी घोलते हैं।

यहां तक कि अपने भाषणों में खुलकर दूसरे समुदायों के लोगों पर ऐसा प्रहार करते हैं कि सुनने वाले उनके समर्थक आक्रोशित हो कर हिंसक कार्रवाईयों को अंजाम दे बैठते हैं। 
महात्मा गांधी की हत्या भी ऐसे ही एक वैचारिक आतंकवाद का स्वतंत्र भारत का पहला उदाहरण थी। 22 जनवरी 1999 को ऑस्ट्रेलियन मिशनरी ग्राहम स्टेंस तथा उनके 10 व 6 वर्ष के दो छोटे बच्चों को उड़ीसा के क्योझार जिले के मनोहरपुर गांव में बजरंग दल कार्यकर्ता दारा सिंह व उसके साथियों ने उनकी गाड़ी में जिंदा जला दिया। 1980 में सैकड़ों हिंदू-मुसलमानों की नृशंस हत्याएं इसी वैचारिक आतंकवाद का परिणाम थीं। आज भी हमारे देश में दर्जनों स्वयंभू धर्म व देश के स्वयंभू ठेकेदार एक-दूसरे समुदाय के विरुद्ध जहर उगलते रहते हैं। कोई कहता है कि पंद्रह मिनट के लिए देश से पुलिस को हटा लो फिर देखो हम क्या कर गुजरते हैं तो कोई कहता है कि हमने गुजरात, आसाम व उड़ीसा में जो कर दिखाया उसे अल्पसंख्यकों को नहीं भूलना चाहिए। इस प्रकार की उकसावे वाली गैरजिम्मेदाराना बातें आज देश में उन लोगों द्वारा घूम-घूम कर सरेआम की जा रही हैं जो संविधान के रक्षक की भूमिका भी निभा रहे हैं तथा जनता द्वारा निर्वाचित भी किए गए हैं।

 ऐसी भाषणबाजी जो किसी भी समुदाय में आक्रामकता पैदा करती हो और किसी एक समुदाय को दूसरे समुदाय के विरुद्ध भड़काती हो ऐसी भाषणबाजी करने वाले समस्त नेताओं, स्वयंभू उपदेशकों व धमुगुरुओं के विरुद्ध सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का नाजायज फायदा उठाने वाले ऐसे लोगों के भाषणों व उनके सार्वजनिक कार्यक्रमों को प्रतिबंधित कर दिया जाना चाहिए। प्रत्येक सच्चे भारतीय नागरिक को चाहे कि वह किसी भी धर्म अथवा समुदाय से संबंध क्यों न रखता हो यह भलीभांति समझ लेना चाहिए कि किसी भी धर्म अथवा समुदाय को कोई भी व्यक्ति जो अपने जहरीले बयानों के द्वारा हमारी एकता व सद्भाव पर प्रहार करने की कोशिश कर रहा हो वह हमारी धार्मिक स्वतंत्रता के साथ-साथ हमारे देश के सर्वधर्म संभाव रूपी ढांचे का भी बड़ा दुश्मन है। हमें ऐसे लोगों से सचेत रहने की जरूरत है। 

अब ताजा मुद्दा गुजरात का है, जहां गौरक्षा दल के आतातायीओं ने समाज में सड़ने के लिए छोड़ दी जाने वाली मृत गायों के शरीर को उठानेे का काम करने वाले अनुसूचित जाति के चार युवकों को सरेराह गाड़ी से बांधकर पीटा। एक तरफ दलित इस घटना को लेकर आंदोलित थे, वहीं दूसरे स्थानों पर आतातायी अन्य दलितों पर अत्याचार की पराकाष्ठा को पार कर रहे थे। इस मुद्दे को दबाने के लिए एक भाजपा नेता ने दलितों की नेता बहन मायावती की तुलना वेश्या से करके गुजरात के मुद्दे को दबाने का काम किया। 

फिलहाल दोनों मामलों को लेकर देश की राजनीति गरमा चुकी है। लेकिन सवाल उठता है कि क्या दलितों पर अत्याचार करने वाले गौरक्षा दल के कार्यकर्ता किसी धर्मगुरू के उपदेश सुनकर दुष्प्रेरित हुए थे। डा.जाकिर नाईक की तरह इस प्रकरण की भी जांच भी होनी चाहिए। यदि वे आतातायी किसी के उपदेशों से दुष्प्रेरित थे, तो उस धर्मगुरु के खिलाफ भी सख्त कार्रवाई होनी चाहिए, क्योंकि यह देश सभी का है और संविधान में सभी के लिए बराबर अधिकार दिए गए हैं।


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