एक बेटे से जुदा होने का दर्द एक माँ के सिवा और कौन जान सकता है जी हा ऐसी ही एक कहानी हम आपको बताने जा रहे है पिछले 23 साल से एक बूढ़ी मां अपने बेटे को तलाशती हर दिन गांव के बस स्टैंड पर आती है. और हर आने-जाने वाले से पूछती है कि साहब मेरा बेटा इस बस में आया है? आज भी नहीं आया, अगर वो आपको मुंबई में कहीं मिल जाए तो बताना कि तेरी मां तुझे याद करती है.
जी हाँ 23 साल से सिर्फ एक ही सवाल जिसका जवाब इस बूढ़ी को अब तक नहीं मिला, उस बूढ़ी औरत का कहना है कि अगर उसका बेटा कहीं पर मिले तो उससे कहना कि उसकी माँ अब काफी बूढ़ी हो चुकी है. उससे अब काम भी नहीं होता. आकर वह अपनी माँ को अपने साथ ले जाए.
रातरीया बस स्टैंड पर सालों से अपने बेटे का इंतज़ार करने वाली इस बूढ़ी मां का नाम है जीवी रबारी.
पिछले 23 साल से ऐसा कोई दिन नहीं आया जब वो अपने बेटे को खोजती हुई दोपहर के तीन बजे बस स्टैंड पर ना आई हो. और हर रोज वो निराश होकर घर लौट जाती है. इस दर्दनाक कहानी को बताते हुए जीवी रबारी के एक और बेटे वरसी रबारी ने बीबीसी को बताया कि 1992 में मेरा छोटा भाई वीरेन अपनी बीवी वरजू और मां को लेकर मुंबई काम ढूंढने गया था.
पिछले 23 साल से ऐसा कोई दिन नहीं आया जब वो अपने बेटे को खोजती हुई दोपहर के तीन बजे बस स्टैंड पर ना आई हो. और हर रोज वो निराश होकर घर लौट जाती है. इस दर्दनाक कहानी को बताते हुए जीवी रबारी के एक और बेटे वरसी रबारी ने बीबीसी को बताया कि 1992 में मेरा छोटा भाई वीरेन अपनी बीवी वरजू और मां को लेकर मुंबई काम ढूंढने गया था.
वीरेन के परिचितों ने बताया कि वे संदेश पहुंचाने के लिए वीरेन के कमरे पर गए थे लेकिन मकान मालिक ने बताया कि वीरेन 12 मार्च से घर लौटा ही नहीं है. घर के सभी लोग परेशान हो गए. वरसी पहली ट्रेन पकड़ कर मुंबई पहुंचें. वीरेन का कोई पता नहीं था. उन्होंने पुलिस की मदद ली. लेकिन वीरेन बम धमाकों में मारे गए लावारिस लाशों में भी नहीं था.
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