पलायन के तीर से राजनीति का शिकार


कैराना पलायन ने उत्तर प्रदेश में 2017 की तैयारियां शुरू कर दी हैं लेकिन यह कहना जल्दबाजी होगी कि अखिलेश सरकार पलायन के मूड में है, वह तो फिर से वापसी चाहती है। रोजगार, सहूलियत और असुरक्षा के दरम्यान हुए पलायन पर राजनीतिक कम्पनियां स्वंय के अलावा सबका पलायन करने की रणनीतिक योजना पर कार्य शुरू तो कर चुकी हैं पर यह सम्भव तभी है जब अचेतन जनता भावनाई आंधी की चपेट में रहेगी। 
    
भौतिक विज्ञान में पलायन वेग है कि जब कोई वस्तु इतने तीव्र वेग से ऊपर की ओर फेंकी जाती है कि वह  पृथ्वी के गुरूत्व केन्द्र को पार कर जाती है। भारत महान   के इतिहास में     यूरेशिया से आर्यों का भारत में आगमन पलायन ही तो है। भारत महान इतिहास में अनेक पलायन सरहद की सीमा के पार भी हमेशा के लिए हुए या यूं कहें कि कर दिये गये। राज्यों से दूसरे राज्यों में, शहरों से दूसरे शहरों में और गांवों से दूसरे गांवों में लोगों का पलायन करना कोई नई बात कैसे हो सकती है? .विचित्रताओं, विभिन्नताओं और विषमताओं के इस मुल्क में राजनीति जनित बहुत कुछ होना शेष है जिसको हमें अपने उदासीन चरित्र के चलते झेलना और सहना है


   
भोपाल त्रासदी के आरोपी को केन्द्र मे राजीव गांधी और राज्य में अर्जुन सिंह की सरकार ने ससम्मान देश की सीमा से बाहर पलायन करवाकर अमेरिका के सामने स्वामी भक्ति का परिचय दिया। दाउद इब्राहीम को पाकिस्तान पलायन कराकर हम आज भी अमेरिका और पाकिस्तान के आगे गिड़गिड़ा रहे हैं। अब माल्या को माल लेकर देश से पलायन करवा दिया गया और फिर ससंद सर पे उठा ली। महूशर चित्रकार मकबूल फिदा हुसैन को धार्मिक आताताईयों ने इस कदर मजबूर किया कि उन्हें कतर पलायन करना पड़ा।
 पलायन के इस खेल में उन्हीं मुददों को बहस के केन्द्र में लाया जाता हैं जिनसे हिन्दुओं और मुसलमानों के वोटों का ध्रुवीकरण आसानी से हो जाये, खून खराबा हो या लाशें गिरें इससे राजनीतिक कम्पनियों को कोई फर्क नहीं पड़ता।

 पलायन खुशी, नाखुशी और इच्छा, अनिच्छा से जुड़ा मसला है। आईआईटी और आईआईएम से निकले मानव ससंाधन खुशी खुशी विदेश को पलायन कर जाते हैं, मां बाप की इस उम्मीद के साथ कि अब करोड़ों में नोटों की बारिश करेगा हमारा बेटा। स्वार्थपरता की जिन्दगी जीने वाला यह वर्ग न समाज के प्रति       संवेदनशील होता है और न राष्ट्र के प्रति। रपटें बताती हैं कि मुजफ्फरनगर दंगों से उपजे हालातों ने 50 हजार मुसलमानों को घर बार छोर कर सुरक्षित ठौर-ठिकाने तलाशनें पडे़। 2009 में मानसून के दौरान बुदेलखण्ड से करीब ढाई लाख लोग अपने खेती, किसानी, जानवर, घर को छोड़कर सीमेन्ट और कंक्रीट के जंगलों में जीवन तलाशने चले गये। असुरक्षा और अपमान ने पलायन कराकर उनकी अपनी पहचान ही छीन ली। पेट के लिए मजबूरीवश अपने पैत्रक गंावों से पलायन करने वाला मजदूर वर्ग जमीदारें अथवा कारखानों में बधुंआ बनकर अपनी पहचान खो देता है। बिहार से चलने वाली रेलगाड़ियों के जनरल कोच गरीबी और अनिच्छा से उपजे पलायन की कहानी ही तो कहते हैं  सम्भावनाओं की तलाश में क्षेत्र से बाहर निकलने पर क्या पलायन हर बार अपने उददेश्यों के लिए सफल होता है । 

यह पलायन प्राकृृतिक न होकर सत्ता और धर्म के शोषणकारी चरित्र द्वारा किया जाता है तब पलायनकर्ता असुरक्षित माहौल के साथ अभावग्रस्त जिन्दगी में धकेल दिया जाता हैं। जंगलों, पहाड़ों और खौफनाक स्थानों पर हजारों वर्ष पूर्व पलायन कर चुके आदिवासी आज भी रोटी के लिए संघर्षरत हैं तो इसलिए कि उनके अन्दर असुरक्षा की भावना पैदा करके सत्ता के विषमतावादी चरित्र ने उनके साथ तमाम धोखे किये, अब वे बीमारी, भूख और सैनिकों की गोली से वक्त से पहले जिन्दगी से पलायन कर जा रहे हैं। धार्मिक स्थलों पर हर वर्ष सैंकड़ों लोग मोक्ष प्राप्ति की लालसा में स्वर्ग अथवा नरक की ओर पलायन करते जा रहे हैं, फिर भी कोई विरोध नही ंबंग्लादेश से पश्चिम बगांल में पलायन करके आये लोगों को कांग्रेस ने सत्ता के लिए हाथों हाथ लिया। क्योंकि मसला सत्ता और वोटों से जुड़ा था। गावों से शहरों की ओर पलायन बुनियादी सहूलियतों के बरक्स होते ही इसलिए हैं कि शहरों में मजदूरी करके ही सही अपने बच्चों के भविष्य की नींव अच्छी शिक्षा और प्रतियोगी वातावरण के बीच रहकर मजबूत की जा सके। 1951 की जनगणना के अनुसार ग्रामीण आबादी 83 प्रतिशत एवं शहरी आबादी 17 प्रतिशत थीर्।  2011 की जनगणना में यह अनुपात 68ः32 हो गई है। सामाजिक विषमता, शोषण, गांवों में वैकल्पिक अवसरांे का अभाव और रोजगार तथा बेहतर जीवन की इच्छा किसी भी काल में पलायन का मुख्य कारक रहा है। कैराना में भाजपा द्वारा हिन्दुओं के पलायन पर प्रदेश का माहौल गर्म करने की कोशिशों के पश्चात स्वंय बचाव की मुद्रा में आ जाना साबित करता है कि पलायन सिर्फ असुरक्षा की भावना से नही जुड़ा था। इसके पीछे,रोजगार कारोबार अथवा अन्य कारण भी जिम्मेदार रहे हांेगे। मुकीम काला पर जेल से धमकाने, फिरौती वसूलने के आरोप किसी धर्म विशेष से जोड़कर देखे जाएं, अपराध या अपराधी की वस्तुनिष्ठ  प्रवृत्ति से मेल नहीं खाते । 

कैराना में स्थानीय स्तर पर अल्पसंख्यक हिन्दुओं का असुरक्षा की भावना के चलते अगर पलायन हुआ है तो पूरे मुल्क में अल्पसंख्यक समुदायों मंे असुरक्षा की स्थिति का सहज अंदाजा लगाया जा सकता हैं, वो भी तब जब आरएसएस और भाजपा के लोग उन्हें मुल्क से भगाने की धमकियां दे रहे हैं। अल्पसंख्यक विरोधी बयान और कृत्य मुल्क में बहस से दूरी बनाये रखते हैं क्योंकि बहसें सत्ता प्रायोजित हैं। जनता की धार्मिक भावनाऐं अल्पसंख्यकों के विरूद्ध कब भड़कानी हैं, इसका उन्हें बखूबी भान है। कैम्पों में टेªनिंग ही इस बात की होती है। मीडिया बतौर एजेन्सी उनके लिए काम कर रही है। खौफ की ज़मीन पर वोटों की फसल लहलहाने का कहीं तो अंत होना चाहिए। 



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कैराना पलायन ने उत्तर प्रदेश में 2017 की तैयारियां शुरू कर दी हैं लेकिन यह कहना जल्दबाजी होगी कि अखिलेश सरकार पलायन के मूड में है, वह तो फिर से वापसी चाहती है। रोजगार, सहूलियत और असुरक्षा के दरम्यान हुए पलायन पर राजनीतिक कम्पनियां स्वंय के अलावा सबका पलायन करने की रणनीतिक योजना पर कार्य शुरू तो कर चुकी हैं पर यह सम्भव तभी है जब अचेतन जनता भावनाई आंधी की चपेट में रहेगी। 
    
भौतिक विज्ञान में पलायन वेग है कि जब कोई वस्तु इतने तीव्र वेग से ऊपर की ओर फेंकी जाती है कि वह  पृथ्वी के गुरूत्व केन्द्र को पार कर जाती है। भारत महान   के इतिहास में     यूरेशिया से आर्यों का भारत में आगमन पलायन ही तो है। भारत महान इतिहास में अनेक पलायन सरहद की सीमा के पार भी हमेशा के लिए हुए या यूं कहें कि कर दिये गये। राज्यों से दूसरे राज्यों में, शहरों से दूसरे शहरों में और गांवों से दूसरे गांवों में लोगों का पलायन करना कोई नई बात कैसे हो सकती है? .विचित्रताओं, विभिन्नताओं और विषमताओं के इस मुल्क में राजनीति जनित बहुत कुछ होना शेष है जिसको हमें अपने उदासीन चरित्र के चलते झेलना और सहना है


   
भोपाल त्रासदी के आरोपी को केन्द्र मे राजीव गांधी और राज्य में अर्जुन सिंह की सरकार ने ससम्मान देश की सीमा से बाहर पलायन करवाकर अमेरिका के सामने स्वामी भक्ति का परिचय दिया। दाउद इब्राहीम को पाकिस्तान पलायन कराकर हम आज भी अमेरिका और पाकिस्तान के आगे गिड़गिड़ा रहे हैं। अब माल्या को माल लेकर देश से पलायन करवा दिया गया और फिर ससंद सर पे उठा ली। महूशर चित्रकार मकबूल फिदा हुसैन को धार्मिक आताताईयों ने इस कदर मजबूर किया कि उन्हें कतर पलायन करना पड़ा।
 पलायन के इस खेल में उन्हीं मुददों को बहस के केन्द्र में लाया जाता हैं जिनसे हिन्दुओं और मुसलमानों के वोटों का ध्रुवीकरण आसानी से हो जाये, खून खराबा हो या लाशें गिरें इससे राजनीतिक कम्पनियों को कोई फर्क नहीं पड़ता।

 पलायन खुशी, नाखुशी और इच्छा, अनिच्छा से जुड़ा मसला है। आईआईटी और आईआईएम से निकले मानव ससंाधन खुशी खुशी विदेश को पलायन कर जाते हैं, मां बाप की इस उम्मीद के साथ कि अब करोड़ों में नोटों की बारिश करेगा हमारा बेटा। स्वार्थपरता की जिन्दगी जीने वाला यह वर्ग न समाज के प्रति       संवेदनशील होता है और न राष्ट्र के प्रति। रपटें बताती हैं कि मुजफ्फरनगर दंगों से उपजे हालातों ने 50 हजार मुसलमानों को घर बार छोर कर सुरक्षित ठौर-ठिकाने तलाशनें पडे़। 2009 में मानसून के दौरान बुदेलखण्ड से करीब ढाई लाख लोग अपने खेती, किसानी, जानवर, घर को छोड़कर सीमेन्ट और कंक्रीट के जंगलों में जीवन तलाशने चले गये। असुरक्षा और अपमान ने पलायन कराकर उनकी अपनी पहचान ही छीन ली। पेट के लिए मजबूरीवश अपने पैत्रक गंावों से पलायन करने वाला मजदूर वर्ग जमीदारें अथवा कारखानों में बधुंआ बनकर अपनी पहचान खो देता है। बिहार से चलने वाली रेलगाड़ियों के जनरल कोच गरीबी और अनिच्छा से उपजे पलायन की कहानी ही तो कहते हैं  सम्भावनाओं की तलाश में क्षेत्र से बाहर निकलने पर क्या पलायन हर बार अपने उददेश्यों के लिए सफल होता है । 

यह पलायन प्राकृृतिक न होकर सत्ता और धर्म के शोषणकारी चरित्र द्वारा किया जाता है तब पलायनकर्ता असुरक्षित माहौल के साथ अभावग्रस्त जिन्दगी में धकेल दिया जाता हैं। जंगलों, पहाड़ों और खौफनाक स्थानों पर हजारों वर्ष पूर्व पलायन कर चुके आदिवासी आज भी रोटी के लिए संघर्षरत हैं तो इसलिए कि उनके अन्दर असुरक्षा की भावना पैदा करके सत्ता के विषमतावादी चरित्र ने उनके साथ तमाम धोखे किये, अब वे बीमारी, भूख और सैनिकों की गोली से वक्त से पहले जिन्दगी से पलायन कर जा रहे हैं। धार्मिक स्थलों पर हर वर्ष सैंकड़ों लोग मोक्ष प्राप्ति की लालसा में स्वर्ग अथवा नरक की ओर पलायन करते जा रहे हैं, फिर भी कोई विरोध नही ंबंग्लादेश से पश्चिम बगांल में पलायन करके आये लोगों को कांग्रेस ने सत्ता के लिए हाथों हाथ लिया। क्योंकि मसला सत्ता और वोटों से जुड़ा था। गावों से शहरों की ओर पलायन बुनियादी सहूलियतों के बरक्स होते ही इसलिए हैं कि शहरों में मजदूरी करके ही सही अपने बच्चों के भविष्य की नींव अच्छी शिक्षा और प्रतियोगी वातावरण के बीच रहकर मजबूत की जा सके। 1951 की जनगणना के अनुसार ग्रामीण आबादी 83 प्रतिशत एवं शहरी आबादी 17 प्रतिशत थीर्।  2011 की जनगणना में यह अनुपात 68ः32 हो गई है। सामाजिक विषमता, शोषण, गांवों में वैकल्पिक अवसरांे का अभाव और रोजगार तथा बेहतर जीवन की इच्छा किसी भी काल में पलायन का मुख्य कारक रहा है। कैराना में भाजपा द्वारा हिन्दुओं के पलायन पर प्रदेश का माहौल गर्म करने की कोशिशों के पश्चात स्वंय बचाव की मुद्रा में आ जाना साबित करता है कि पलायन सिर्फ असुरक्षा की भावना से नही जुड़ा था। इसके पीछे,रोजगार कारोबार अथवा अन्य कारण भी जिम्मेदार रहे हांेगे। मुकीम काला पर जेल से धमकाने, फिरौती वसूलने के आरोप किसी धर्म विशेष से जोड़कर देखे जाएं, अपराध या अपराधी की वस्तुनिष्ठ  प्रवृत्ति से मेल नहीं खाते । 

कैराना में स्थानीय स्तर पर अल्पसंख्यक हिन्दुओं का असुरक्षा की भावना के चलते अगर पलायन हुआ है तो पूरे मुल्क में अल्पसंख्यक समुदायों मंे असुरक्षा की स्थिति का सहज अंदाजा लगाया जा सकता हैं, वो भी तब जब आरएसएस और भाजपा के लोग उन्हें मुल्क से भगाने की धमकियां दे रहे हैं। अल्पसंख्यक विरोधी बयान और कृत्य मुल्क में बहस से दूरी बनाये रखते हैं क्योंकि बहसें सत्ता प्रायोजित हैं। जनता की धार्मिक भावनाऐं अल्पसंख्यकों के विरूद्ध कब भड़कानी हैं, इसका उन्हें बखूबी भान है। कैम्पों में टेªनिंग ही इस बात की होती है। मीडिया बतौर एजेन्सी उनके लिए काम कर रही है। खौफ की ज़मीन पर वोटों की फसल लहलहाने का कहीं तो अंत होना चाहिए। 




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