नमाज की ये पांच बातें हर धर्म के लोगो को जाननी चाहिए


इस्लाम में नमाज या सलाह का महत्वनमाज फारसी शब्द है, जो उर्दू में अरबी शब्द सलात का पर्याय है। कुरान शरीफ में सलात शब्द बार-बार आया है और प्रत्येक मुसलमान स्त्री और पुरुष को नमाज पढ़ने का आदेश ताकीद के साथ दिया गया है।
रमजान के मुबारक महीने रोजे रखने के साथ, पांच बार की नमाज अदा करना भी जरूरी है। नमाज के मुताल्लिक उलैमा इकराम लिखते हैं कि, हर नमाज ऐसे अदा करो जैसे कि यह तुम्हारी आखिरी नमाज हो। इससे यह पता चलता है कि इस्लाम में नमाज का क्या महत्व है। इस्लाम में पांच वक्त की नमाज फर्ज है, यानि पांच बार नमाज पढ़ना जरूरी है।
न दुखाए किसी का दिलपीरजी अहमद अली के अनुसार नमाज इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक है। नमाज जिंदगी में परहेजगारी लाती है, यानि नमाज पढ़ने वाला कभी भी गलत काम नहीं कर सकता। जो मुस्लमान पांच बार कि नमाज पढ़ते हैं, जिंदगी में वह कभी किसी कि बुराई, किसी के गलत काम में उसका साथ और ऐसा कुछ नहीं बोलते हैं जिससे किसी का दिल दुखे।

पांच समय की नमाज पढ़ने का विधान व उनका महत्व1- नमाज -ए-फजर (उषाकाल की नमाज) यह पहली नमाज है जो प्रात: काल सूर्य के उदय होने के पहले पढ़ी जाती है।
नोट- पहली नमाज सुबह की उषाकाल की होती है। ऐसा माना जाता है कि इसे करने से रोजी में बरकत होती है। इसके साथ ही तंदरुस्ती बनी रहती है।

2- नमाज-ए-जुहला (अवनतिकाल की नमाज) यह दूसरी नमाज है जो मध्याह्न सूर्य के ढलना शुरू करने के बाद पढ़ी जाती है।
नोट- दूसरी नमाज मध्याह्न सूर्य के ढलना शुरू करने के बाद होती है। ऐसा माना जाता है कि इसे करने से रोजी में बरकत ज्यादा होती है व बरकत बनी रहती है।

3- नमाज -ए-अस्त्र (दिवसावसान की नमाज) यह तीसरी नमाज है जो सूर्य के अस्त होने के कुछ पहले होती है।
नोट- तीसरी नमाज जो सूर्य के अस्त होने के कुछ पहले होती है। इसे करने से शरीर में बीमारी नहीं रहती है।

4- नमाज-ए-मगरिब (पश्चिम की नमाज) चौथी नमाज जो सूर्यास्त के तुरंत बाद होती है।
नोट- चौथी नमाज जो सूर्यास्त के तुरंत बाद होती है। ऐसा बताया जा रहा है इसे अपनी औलाद की तंदरुस्ती के लिए किया जाता है।

5- नमाज-ए-अशा (रात्रि की नमाज) अंतिम पांचवीं नमाज जो सूर्यास्त के डेढ़ घंटे बाद पढ़ी जाती है।
नोट- पांचवी नमाज सुकुन की नींद के लिए की जाती है।
'नमाज अल्लाह से मांगने का जरिया है। इस माह रोजा रखकर रोजेदार अल्लाह की इबादत करते हैं। अल्लाह का शुक्रिया करते हैं, जिसने हमें जिंदगी बख्‍शी है।'
- पीरजी अहमद अली.
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इस्लाम में नमाज या सलाह का महत्वनमाज फारसी शब्द है, जो उर्दू में अरबी शब्द सलात का पर्याय है। कुरान शरीफ में सलात शब्द बार-बार आया है और प्रत्येक मुसलमान स्त्री और पुरुष को नमाज पढ़ने का आदेश ताकीद के साथ दिया गया है।
रमजान के मुबारक महीने रोजे रखने के साथ, पांच बार की नमाज अदा करना भी जरूरी है। नमाज के मुताल्लिक उलैमा इकराम लिखते हैं कि, हर नमाज ऐसे अदा करो जैसे कि यह तुम्हारी आखिरी नमाज हो। इससे यह पता चलता है कि इस्लाम में नमाज का क्या महत्व है। इस्लाम में पांच वक्त की नमाज फर्ज है, यानि पांच बार नमाज पढ़ना जरूरी है।
न दुखाए किसी का दिलपीरजी अहमद अली के अनुसार नमाज इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक है। नमाज जिंदगी में परहेजगारी लाती है, यानि नमाज पढ़ने वाला कभी भी गलत काम नहीं कर सकता। जो मुस्लमान पांच बार कि नमाज पढ़ते हैं, जिंदगी में वह कभी किसी कि बुराई, किसी के गलत काम में उसका साथ और ऐसा कुछ नहीं बोलते हैं जिससे किसी का दिल दुखे।

पांच समय की नमाज पढ़ने का विधान व उनका महत्व1- नमाज -ए-फजर (उषाकाल की नमाज) यह पहली नमाज है जो प्रात: काल सूर्य के उदय होने के पहले पढ़ी जाती है।
नोट- पहली नमाज सुबह की उषाकाल की होती है। ऐसा माना जाता है कि इसे करने से रोजी में बरकत होती है। इसके साथ ही तंदरुस्ती बनी रहती है।

2- नमाज-ए-जुहला (अवनतिकाल की नमाज) यह दूसरी नमाज है जो मध्याह्न सूर्य के ढलना शुरू करने के बाद पढ़ी जाती है।
नोट- दूसरी नमाज मध्याह्न सूर्य के ढलना शुरू करने के बाद होती है। ऐसा माना जाता है कि इसे करने से रोजी में बरकत ज्यादा होती है व बरकत बनी रहती है।

3- नमाज -ए-अस्त्र (दिवसावसान की नमाज) यह तीसरी नमाज है जो सूर्य के अस्त होने के कुछ पहले होती है।
नोट- तीसरी नमाज जो सूर्य के अस्त होने के कुछ पहले होती है। इसे करने से शरीर में बीमारी नहीं रहती है।

4- नमाज-ए-मगरिब (पश्चिम की नमाज) चौथी नमाज जो सूर्यास्त के तुरंत बाद होती है।
नोट- चौथी नमाज जो सूर्यास्त के तुरंत बाद होती है। ऐसा बताया जा रहा है इसे अपनी औलाद की तंदरुस्ती के लिए किया जाता है।

5- नमाज-ए-अशा (रात्रि की नमाज) अंतिम पांचवीं नमाज जो सूर्यास्त के डेढ़ घंटे बाद पढ़ी जाती है।
नोट- पांचवी नमाज सुकुन की नींद के लिए की जाती है।
'नमाज अल्लाह से मांगने का जरिया है। इस माह रोजा रखकर रोजेदार अल्लाह की इबादत करते हैं। अल्लाह का शुक्रिया करते हैं, जिसने हमें जिंदगी बख्‍शी है।'
- पीरजी अहमद अली.

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