जब मुहम्मद (सल्ल.) को यह मालूम हुआ कि मक्का से कुरैश यहां मुसलमानों पर युद्ध थोपने आ रहे हैं तो समझ गए कि यह एक निर्णायक समय बिंदु है। कुरैश से शांति, संधि, सिद्धांत और भाईचारे की जितनी बातें करनी थीं, कर चुके। उनके लिए पूरा मक्का छोड़ आए। अब अगर वे लोग यहां युद्ध की इच्छा से आ रहे हैं तो युद्ध अवश्य करना चाहिए।
कुरैश सबकुछ समाप्त कर देने के इरादे से आ रहे थे। मुसलमानों को मदीना में आए कुछ ही समय हुआ था। मुहाजिरों के पास धन नहीं था। बस किसी तरह जिंदगी को आगे बढ़ाने की कोशिश जारी थी। ऐसे में कोई आक्रमण कर दे तो इनकी रक्षा के लिए सर्वथा उचित है कि दुश्मन का सामना किया जाए। जितने संसाधन हैं, उन्हीं के बल पर दुश्मन को आगे बढ़ने से रोका जाए।
आपने (सल्ल.) सभी को इकट्ठा किया और स्थिति से अवगत कराया। उस समय हजरत अबू-बक्र (रजि.) के वीरतापूर्ण भाषण ने सबमें साहस का संचार किया। फिर हजरत उमर (रजि.) ने विचार व्यक्त किए। बहुत जोशीला भाषण दिया। अम्र के पुत्र मिकदाद (रजि.) बोले, जब तक हममें से कोई एक आदमी भी जीवित है, हम आपका साथ नहीं छोड़ेंगे।
साथियों के मुख से ऐसी वीरतापूर्ण बातें सुनकर अल्लाह के रसूल (सल्ल.) बहुत प्रसन्न हुए। उन्हें ऐसी ही उम्मीद थी। अंसार की ओर से हजरत सअद (रजि.) ने युद्ध में विजय या आत्मबलिदान की बात कही। उन्होंने कहा, खुदा की कसम, अगर आप हमें लेकर समुद्र में कूद पड़ें तो भी हम खुशी-खुशी तैयार हैं। हममें से कोई पीछे नहीं रहेगा।
आप जिससे चाहें संधि करें, जिससे चाहें युद्ध करें। हमारा धन भी आपके चरणों में है। जितना चाहिए, लीजिए। जितना धन स्वीकार करेंगे, हमें उतनी ही अधिक प्रसन्न होगी। मैं इस रास्ते कभी नहीं गया, न मुझे इसके विषय में कोई जानकारी है, परंतु हम दुश्मन से भागने वाले नहीं हैं। हम तो रणभूमि के सिंह हैं। मुकाबले में अडिग रहने वाले हैं। आशा है कि हम वीरता के ऐसे कारनामे दिखा देंगे कि आप प्रसन्न हो जाएंगे।
हजरत सअद (रजि.) ने बहुत साहस एवं निष्ठापूर्ण भाषण दिया। सुनकर प्यारे नबी (सल्ल.) बहुत प्रसन्न हुए। अब युद्ध निश्चित था। अभी हिजरत का दूसरा साल चल रहा था और रमजान का महीना। आपने (सल्ल.) सेना का जायजा लिया। जो आयु में बहुत छोटे थे उन्हें घर जाने के लिए कह दिया। फिर सेना ने कूच किया। अपने बहादुर साथियों के संग आप (सल्ल.) रणभूमि की ओर बढ़ रहे थे। सेना में तीन सौ तेरह योद्धा थे। सत्तर ऊंट और मात्र तीन घोड़े।
जब बद्र नामक स्थान पर पहुंचे तो उस रात बिजली चमकी, बादल गरजे और खूब बरसात हुई। आपकी (सल्ल.) ओर जमीन रेतीली थी। वह बरसात से जम गई। उस पर चलना आसान हो गया। कुरैश की ओर जमीन नीची थी। जब पानी वहां बहकर गया तो कीचड़ हो गया। उधर दुश्मन का कदम रखना भी मुश्किल हो गया।
हजरत सअद (रजि.) के सुझाव के बाद प्यारे नबी (सल्ल.) के लिए एक ऊंचे टीले पर तंबू लगाया गया, ताकि रणभूमि का दृश्य साफ दिख सके। नमाज के लिए यह स्थान श्रेष्ठ था।
आपने (सल्ल.) सेना को युद्ध के लिए तैयार किया। कुशल सेनापति की तरह योद्धाओं को पंक्ति में खड़ा किया। फिर रणभूमि में आए। आपने (सल्ल.) बहुत जोशीला भाषण दिया। अल्लाह की तारीफ व शुक्र के पश्चात फरमाया – प्यारे भाइयो! मैं तुम्हें उन चीजों पर उभारता हूं, जिन पर अल्लाह ने उभारा है और उन चीजों से रोकता हूं, जिनसे अल्लाह ने रोका है।
अल्लाह बड़ी शान वाला है। हक का हुक्म देता है। सच्चाई को पसंद करता है। भलाई करने वालों को उच्च स्थान देता है। उसी से वे याद किए जाते हैं और उसी से उनके दर्जे बढ़ते हैं। इस समय तुम हक की मंजिल में पहुंच चुके हो, जहां वही काम कबूल किया जाता है, जो केवल अल्लाह के लिए किया जाए।
इस अवसर पर सब्र से काम लो, क्योंकि यह युद्ध का समय है। लड़ाई के समय सब्र करने से इत्मीनान और सुकून मिलता है। परेशानी और बेचैनी दूर हो जाती हैं। आखिरत में भी यही निजात का माध्यम है।
तुम्हारे बीच अल्लाह का नबी मौजूद है, जो तुम्हें बुराइयों से होशियार करता है। भलाइयों का हुक्म देता है, देखो, आज तुमसे कोई ऐसी हरकत न हो पाए, जिससे कि अल्लाह नाराज हो जाए। अल्लाह स्वयं फरमाता है- तुम्हारी अपनों से जो नाराजी है, अल्लाह की नाराजी उससे बढ़कर है।
अल्लाह ने तुम्हें जो किताब दी है, उसे मजबूती से पकड़े रखो। तुम्हें जो निशानियां दिखाई हैं, उन पर ध्यान रखो। अपमान के बाद जिससे तुम्हें सम्मान मिला है, उससे गाफिल न हों। इससे अल्लाह प्रसन्न होगा। अल्लाह आज तुमको आजमाना चाहता है।
इस अवसर पर तुम निष्ठा और वीरता का प्रमाण दो। अल्लाह की रहमत तुम पर छा जाएगी। वह तुम्हें क्षमा करेगा। उसका वायदा पूरा होने वाला है। उसकी बातें बिल्कुल सच्ची हैं। उसकी पकड़ भी बहुत सख्त है। हम और तुम सब उसके दम से हैं।
वह हमेशा से है और हमेशा रहेगा। संपूर्ण जगत उसी की आज्ञा से है। वही हमारा सहारा है। उसी को हमने मजबूती से पकड़ा है। उसी पर हमारा भरोसा है। वही हमारा पनाहगाह है। अल्लाह मुझे और तुम मुसलमानों को क्षमा करे।
कुरैश की सेना उस ओर थी। हर सिपाही पूरी तैयारी के साथ आया था। दुश्मन का पलड़ा संख्याबल व शस्त्रों से भारी था। आत्मरक्षा के लिए हर सैनिक सिर से पैर तक लोहे में डूबा था।
उस समय आप (सल्ल.) हाथ फैलाकर अपने रब से दुआ मांगते – ऐ अल्लाह! ये कुरैश के लोग हैं। घमंड से अकड़ते हुए तुमसे युद्ध करने आए हैं। तेरे दीन के विरुद्ध कमर कसे हैं। तेरे रसूल को नाकाम करने को तुले हैं। ऐ अल्लाह तुमने सहायता का वायदा किया है। इसी वायदे को पूरा कर। ऐ अल्लाह! तुमने मुझसे साबित कदम रहने के लिए कहा है और ‘बड़े गिरोह’ का वायदा किया है। बेशक तू वायदा पूरा करने वाला है।
अल्लाह के रसूल (सल्ल.) कभी सजदे में गिरते और फरमाते – ऐ रब! अगर आज ये कुछ जानें मिट गईं तो कयामत तक तेरी इबादत न होगी। उस समय आपके (सल्ल.) कंधों से चादर गिर जाती और पता भी न चलता।
अल्लाह किसे विजय का वरदान देगा और किसके हिस्से में हार का मातम आएगा, यह पहले ही तय कर चुका था। वह लगातार मुसलमानों की सहायता कर रहा था। उसने आपको (सल्ल.) सपने में दिखाया कि दुश्मन संख्या में थोड़े ही हैं। यह सुनकर मुसलमानों का हौसला और बढ़ गया।
जब दोनों सेनाएं आमने-सामने थीं तो मुसलमानों को दुश्मन कम नजर आए। मुसलमान भी दुश्मन को कम ही दिखे। अब दोनों युद्ध के लिए तैयार थे, बस आक्रमण की बारी थी।
युद्ध प्रारंभ हुआ। योद्धा एक दूसरे को ललकारने लगे। तलवारें टकराईं, लहू से लहू मिला। उसी समय रब का करना ऐसा हुआ कि दुश्मन को मुसलमान ज्यादा दिखने लगे। उनमें घबराहट फैल गई। मुसलमानों की हिम्मत बढ़ी, दुश्मन के पांव उखड़ने लगे।
बड़ा घमासान छिड़ा था। अल्लाह सत्य के साथ था और सत्य मुसलमानों की ओर। बद्र की इस भूमि में असत्य कैसे विजय प्राप्त कर सकता था? अल्लाह की ताकत उसके रसूल की मदद कर रही थी। मुहम्मद (सल्ल.) के साथियों ने युद्ध में पराक्रम दिखाया। लड़ाई परवान पर थी, योद्धाओं का जोश उफान पर।
हर कोई अपने जोर से बाजी पलटना चाहता था। उसी दौरान प्यारे नबी (सल्ल.) ने एक मुट्ठी रेत ली और दुश्मन की ओर फेंकते हुए फरमाया – चेहरे बिगड़ जाएं! चेहरे बिगड़ जाएं!
रेत दुश्मन की आंखों में चुभने लगी। वह उनके लिए अजाब सिद्ध हुई। दुश्मन बेचैनी से आंखें मलने लगा। एक-एक कर उनके कई योद्धा मारे गए। दुश्मन की ताकत अब तेजी से घटने लगी। पराजय साफ दिखाई देने लगी।
कुरैश की पकड़ ढीली पड़ी। उनके वार में अब वो ताकत नहीं बची। युद्ध में अबू-जहल भी मारा गया। कुरैश के जो सरदार अपनी झूठी शान में अकड़ दिखा रहे थे, उनके सिर धड़ से जुदा होकर जमीन पर पड़े थे। दुश्मन के सत्तर लोग मारे गए, सत्तर ही बंदी बनाए गए।
मुसलमानों में से चौदह लोग शहीद हुए। इनमें छह मुहाजिर थे तथा आठ अंसारी। दुश्मन को भारी नुकसान हुआ। मुसलमानों की विजय हुई। अल्लाह के रसूल (सल्ल.) ने बद्र में मिली विजय का शुभ समाचार मदीना पहुंचाया। यह समाचार लाने वाले हजरत अब्दुल्लाह-बिन-रवाहा (रजि.) एवं जैद (रजि.) थे। बद्र में विजय की गूंज बहुत दूर तक सुनाई दी।
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