जब रोज़े में जावेद ने रामपति को ख़ून दिया


"ज़रूरत पड़ी, तो और ख़ून दूंगा." जावेद अख़्तर ने स्नेह से रामपति देवी के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा. अस्पताल के बिस्तर पर पड़ीं रामपति देवी को पता भी नहीं था कि उन्हें ख़ून किसने दिया. जब रामपति को मालूम हुआ कि उनके लिए ख़ून का इंतज़ाम कैसे हुआ और किसने दिया तो वे भावुक हो उठीं.
रामपति देवी ने धीरे से कहा, "अब अस्पताल से छुट्टी हो जाएगी." जावेद मुस्कराते हुए कहते हैं, "लगता है अल्लाह ने मेरा रोज़ा क़बूल कर लिया."
जावेद अख़्तर झारखंड के बालूमाथ क़स्बे के रहने वाले हैं. ये वही बालूमाथ है जहां पिछले दिनों मु्स्लिम समुदाय के दो पशु व्यापारियों की हत्या कर पेड़ पर लटका दिया गया था. इनमें एक लड़के की उम्र महज बारह साल थी.
इस घटना में पुलिस ने हिन्दू समुदाय के पांच लोगों को गिरफ़्तार कर जेल भेजा था.
Image copyrightNEERAJ SINHA
बालूमाथ के ही नारायण प्रजापति ने पिछले हफ़्ते रांची के सरकारी में अपनी मां रामपति को भर्ती करवाया था.
उन्हें ख़ून की बेहद कमी थी और कमज़ोरी से जूझ रही थीं. वे बताते हैं कि डॉक्टरों ने तत्काल ख़ून का इंतज़ाम करने को कहा. इससे वे परेशान थे. जावेद को जब इस बात की जानकारी मिली, तो वे डेढ़ सौ किलोमीटर का सफर तय कर अस्पताल पहुंचे और रोज़े की हालत में उन्होंने ख़ून दिया. बदले में रामपति देवी को उनके ग्रुप का खून चढ़ाया गया.
महिला को और ख़ून की जरूरत पड़ी, तो वे फिर से ख़ून देने को तैयार हो गए. नारायण बताते हैं, "वो क्षण भूलना आसान नहीं. रोज़ा पर रहने की वजह से जावेद को ख़ून देने से रोका गया. फिर भी वे डेढ़ घंटे तक टस से मस नहीं हुए. जब वक़्त हुआ तो वहीं इफ़्तार किया और तुरंत बेड पर लेट गए."
जावेद बताते हैं कि रामपति देवी और उनके घर की दीवारें लगी हुई हैं. उन्हें बचपन के वो दिन अब भी याद हैं जब 'चुट्टू भैया' के घर पर पेट भरकर पूड़ी-पुआ खाया करते थे.
Image copyrightNEERAJ SINHA
रामपति देवी के पति को सभी प्यार से 'चुट्टू भैया' पुकारते हैं. बालूमाथ में ही उनकी परचून की दुकान है.
जावेद बताते हैं कि तीन महीने पहले वो इसी अस्पताल में भर्ती अपने किसी परिजन से मिलने आए थे. अस्पताल के बरांडे में गिरिडीह से आई एक महिला रो रहीं थीं. उन्हें पता चला कि उनकी बेटी को खून की जरूरत है. और इंतजाम करना मुश्किल है. जावेद ने तुरंत अपना खून दिया.
वे बताते हैं वे उस परिवार को जानते तक नहीं थे, पर इतना याद है कि वे लोग भी हिन्दू थे और उस बच्ची का नाम प्रियंका था.
पिछले साल वे अजमेर शरीफ की यात्रा पर थे. बीच रास्ते में उनके एक हिन्दू परिचित ने बताया कि उनका बेटा कोटा में है और डेंगू की चपेट में है.
Image copyrightNEERAJ SINHA
जावेद बीच रास्ते से कोटा पहुंचे, फिर उस बच्चे को लेकर एंबुलेंस से दिल्ली गए. कई दिनों तक वहीं रहे. वे कहते हैं कि 'शायद ख्वाजा को यही मंजूर था.'
वे ग्रामीण इलाके की पत्रकारिता से भी जुड़े रहे हैं.
मुजफ़्फ़रनगर, दादरी, कैराना के साथ बालूमाथ की घटनाओं के बारे में पूछे जाने पर कहते हैं, "वे घटनाएं अमानवीय हो सकती हैं, पर इनसे हमारे ख़्याल नहीं बदलते."
उनके इस रुख़ पर क्या घर वाले आपत्ति नहीं करते. वे कहते हैं, "रोक-टोक तो करते ही हैं, पर मैं इतना कह कर बच निकलता हूं, कि हिन्दू या मुस्लमान के खून का रंग अलग कहां होता है."

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"ज़रूरत पड़ी, तो और ख़ून दूंगा." जावेद अख़्तर ने स्नेह से रामपति देवी के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा. अस्पताल के बिस्तर पर पड़ीं रामपति देवी को पता भी नहीं था कि उन्हें ख़ून किसने दिया. जब रामपति को मालूम हुआ कि उनके लिए ख़ून का इंतज़ाम कैसे हुआ और किसने दिया तो वे भावुक हो उठीं.
रामपति देवी ने धीरे से कहा, "अब अस्पताल से छुट्टी हो जाएगी." जावेद मुस्कराते हुए कहते हैं, "लगता है अल्लाह ने मेरा रोज़ा क़बूल कर लिया."
जावेद अख़्तर झारखंड के बालूमाथ क़स्बे के रहने वाले हैं. ये वही बालूमाथ है जहां पिछले दिनों मु्स्लिम समुदाय के दो पशु व्यापारियों की हत्या कर पेड़ पर लटका दिया गया था. इनमें एक लड़के की उम्र महज बारह साल थी.
इस घटना में पुलिस ने हिन्दू समुदाय के पांच लोगों को गिरफ़्तार कर जेल भेजा था.
Image copyrightNEERAJ SINHA
बालूमाथ के ही नारायण प्रजापति ने पिछले हफ़्ते रांची के सरकारी में अपनी मां रामपति को भर्ती करवाया था.
उन्हें ख़ून की बेहद कमी थी और कमज़ोरी से जूझ रही थीं. वे बताते हैं कि डॉक्टरों ने तत्काल ख़ून का इंतज़ाम करने को कहा. इससे वे परेशान थे. जावेद को जब इस बात की जानकारी मिली, तो वे डेढ़ सौ किलोमीटर का सफर तय कर अस्पताल पहुंचे और रोज़े की हालत में उन्होंने ख़ून दिया. बदले में रामपति देवी को उनके ग्रुप का खून चढ़ाया गया.
महिला को और ख़ून की जरूरत पड़ी, तो वे फिर से ख़ून देने को तैयार हो गए. नारायण बताते हैं, "वो क्षण भूलना आसान नहीं. रोज़ा पर रहने की वजह से जावेद को ख़ून देने से रोका गया. फिर भी वे डेढ़ घंटे तक टस से मस नहीं हुए. जब वक़्त हुआ तो वहीं इफ़्तार किया और तुरंत बेड पर लेट गए."
जावेद बताते हैं कि रामपति देवी और उनके घर की दीवारें लगी हुई हैं. उन्हें बचपन के वो दिन अब भी याद हैं जब 'चुट्टू भैया' के घर पर पेट भरकर पूड़ी-पुआ खाया करते थे.
Image copyrightNEERAJ SINHA
रामपति देवी के पति को सभी प्यार से 'चुट्टू भैया' पुकारते हैं. बालूमाथ में ही उनकी परचून की दुकान है.
जावेद बताते हैं कि तीन महीने पहले वो इसी अस्पताल में भर्ती अपने किसी परिजन से मिलने आए थे. अस्पताल के बरांडे में गिरिडीह से आई एक महिला रो रहीं थीं. उन्हें पता चला कि उनकी बेटी को खून की जरूरत है. और इंतजाम करना मुश्किल है. जावेद ने तुरंत अपना खून दिया.
वे बताते हैं वे उस परिवार को जानते तक नहीं थे, पर इतना याद है कि वे लोग भी हिन्दू थे और उस बच्ची का नाम प्रियंका था.
पिछले साल वे अजमेर शरीफ की यात्रा पर थे. बीच रास्ते में उनके एक हिन्दू परिचित ने बताया कि उनका बेटा कोटा में है और डेंगू की चपेट में है.
Image copyrightNEERAJ SINHA
जावेद बीच रास्ते से कोटा पहुंचे, फिर उस बच्चे को लेकर एंबुलेंस से दिल्ली गए. कई दिनों तक वहीं रहे. वे कहते हैं कि 'शायद ख्वाजा को यही मंजूर था.'
वे ग्रामीण इलाके की पत्रकारिता से भी जुड़े रहे हैं.
मुजफ़्फ़रनगर, दादरी, कैराना के साथ बालूमाथ की घटनाओं के बारे में पूछे जाने पर कहते हैं, "वे घटनाएं अमानवीय हो सकती हैं, पर इनसे हमारे ख़्याल नहीं बदलते."
उनके इस रुख़ पर क्या घर वाले आपत्ति नहीं करते. वे कहते हैं, "रोक-टोक तो करते ही हैं, पर मैं इतना कह कर बच निकलता हूं, कि हिन्दू या मुस्लमान के खून का रंग अलग कहां होता है."


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