गरीब को दो रोटी भाषण नहीं


अगर इन पर्टियों से पार पाना है तो पीएम मोदी को लंबे चौड़े भाषण देने के बजाये गरीब की थाली भरने वाली योजनाओं को चुनाव प्रचार के दौरान जनता के बीच ले जाना होगा।

विकास के पुल बने या न बने लेकिन तारीफों के पुल आसमान छू रहे है। हर चैनल व समाचार पत्रो के माध्यम से मोदी शायद यही कहने की कोशिश कर रहे है। कि देखना है अगर भाजपा की उड़ान को तो ऊंचा कर दो इस नीले आसमान को। देश में केंद्र की सत्ता पर कई  दशकों तक रहने वाली कांग्रेस मोदी के छैनी व हथौड़ों से भी न कटने वाले भाषणों के नीचे दबकर रह गई है। कांग्रेस के सिपेहसलारों को जागती आंखों में भी शायद यहीं सपने आ रहे है कि देश की सबसे बड़ी पार्टी के नाम से कही राष्ट्रीय पार्टी का तमगा भी न छिन जाये।

 इसके लिए कुछ हद तक काग्रेस स्वयं ही दोषी है, यदि पिछले दो सालो की बात की जाये तो शायद ही उसने चुनाव लड़ने जैसा कोई काम किया हो, अब यह पार्टी पंडित नेहरू, इंदिरा गांधी व राजीव गांधी वाली काग्रेस नजर नजर नहीं आती। जिन्हे देश के श्रेष्ठ नीति नियंताओं में शुमार किया जाता है। लेकिन काग्रेस के पिछले कुछ वर्षो का आंकलन करें तो वह अपने सेनापति का चुनाव करने में ही संकोच करती रहीं है कि युवराज राहुल गांधी भाजपा और अन्य राष्ट्रीय व क्षेत्रीय दलों के चक्रव्यूह को भेद पायंेगे या नहीं।

अब काग्रेस को कुछ दिन के लिए ज्यादा चिंता करने की जरूरत नहीं है क्योंकि अब ऐसे प्रदेश में चुनाव का बिगुल बजने जा रहा है। जहां काग्रेस तीन दशक पहले ही अपनी राजनैतिक जमीन गंवा चूकी है। उत्तर प्रदेश की अगर बात की जाये तो आवादी के मामले में यह भारत का सबसे बड़ा राज्य होने के बावजूद किसी शक्तिशाली देश से कम नहीं है। 
विश्वपटल पर स्वयं भारत समेत पांच देश ही आवादी के मामले में इससे बड़े है जिनमें चीन, संयुक्त अमेरिका, ब्राजील व इंडोनेशिया है। अब आप को मान लेना चाहिए कि जब इतने बड़े प्रदेश में चुनाव है जो दुनियां के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश का सबसे बड़ा सूबा है तो मुकाबला रोचकता से भरा तो रहेगा। भाजपा को 16वीं लोकसभा के चुनाव में आश्चर्यचकित जीत दिलाने में नायक की भूमिका निभाने वाले स्वयं पीएम मोदी यूपी में जीत दर्ज करने के लिए लगातार बैठक व रैलियां कर रहे है। 

हाल ही में केंद्रीय ग्रह मंत्री राजनाथ सिंह पंश्चिम यूपी के अमरोहा जनपद में यूपी को सपा और बसपा से मुक्त करने का नारा दे चूकें है। लेकिन रैली से दो दिन पहले इसी जनपद की तहसील हसनपुर के किसान कुलदीप ने नौ लाख बैंक कर्ज के तले दबकर आत्महत्या कर ली। परंतु ग्रहमंत्री ने रैली के दौरान एक बार भी उसके परिजनों के आंसू पौछने का काम नहीं किया। इसी तरह प्रदेश में न जाने कितने किसान कर्ज से दबकर आत्महत्या कर रहे है। जिस उत्तर प्रदेश की भूमि पर चुनावी दंगल की तैयारी है। 
उसकी आधी आवादी पानी की बुंद-बुंद को तरसने के बाद दूसरी जगहों पर पलायन के लिए मजबूर हो रही है। लेकिन भाजपा यहां की सूखी जमीन पर कमल की खेती करने की तैयारी में लगी है। उत्तर प्रदेश की सूखी जमीन से धधकते   शोले और कर्ज से दबकर आत्महत्या कर रहे किसानों के परिवारो के आंसू पोछने में जो दल कामयाब होगा वहीं जीत का सफर तय करेगा।

बीते लोकसभा चुनाव में सपा व बसपा का सूपड़ा साफ कर देने वाली भाजपा को अति उत्साह में न आकर बीते डेढ़ दशक के रिकार्ड पर भी गौर करना होगा। जिन पार्टियों से भाजपा का अब मुकाबला होने जा रहा है ये वही बसपा और सपा है जिन्होने 2007  व 2012 के विधानसभा चुनाव में 50 का आंकड़ा भी न छूने दिया था। अगर इन पर्टियों से पार पाना है तो पीएम मोदी को लंबे चौड़े भाषण देने के बजाये गरीब की थाली भरने वाली योजनाओं को चुनाव प्रचार के दौरान जनता के बीच ले जाना होगा।


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अगर इन पर्टियों से पार पाना है तो पीएम मोदी को लंबे चौड़े भाषण देने के बजाये गरीब की थाली भरने वाली योजनाओं को चुनाव प्रचार के दौरान जनता के बीच ले जाना होगा।

विकास के पुल बने या न बने लेकिन तारीफों के पुल आसमान छू रहे है। हर चैनल व समाचार पत्रो के माध्यम से मोदी शायद यही कहने की कोशिश कर रहे है। कि देखना है अगर भाजपा की उड़ान को तो ऊंचा कर दो इस नीले आसमान को। देश में केंद्र की सत्ता पर कई  दशकों तक रहने वाली कांग्रेस मोदी के छैनी व हथौड़ों से भी न कटने वाले भाषणों के नीचे दबकर रह गई है। कांग्रेस के सिपेहसलारों को जागती आंखों में भी शायद यहीं सपने आ रहे है कि देश की सबसे बड़ी पार्टी के नाम से कही राष्ट्रीय पार्टी का तमगा भी न छिन जाये।

 इसके लिए कुछ हद तक काग्रेस स्वयं ही दोषी है, यदि पिछले दो सालो की बात की जाये तो शायद ही उसने चुनाव लड़ने जैसा कोई काम किया हो, अब यह पार्टी पंडित नेहरू, इंदिरा गांधी व राजीव गांधी वाली काग्रेस नजर नजर नहीं आती। जिन्हे देश के श्रेष्ठ नीति नियंताओं में शुमार किया जाता है। लेकिन काग्रेस के पिछले कुछ वर्षो का आंकलन करें तो वह अपने सेनापति का चुनाव करने में ही संकोच करती रहीं है कि युवराज राहुल गांधी भाजपा और अन्य राष्ट्रीय व क्षेत्रीय दलों के चक्रव्यूह को भेद पायंेगे या नहीं।

अब काग्रेस को कुछ दिन के लिए ज्यादा चिंता करने की जरूरत नहीं है क्योंकि अब ऐसे प्रदेश में चुनाव का बिगुल बजने जा रहा है। जहां काग्रेस तीन दशक पहले ही अपनी राजनैतिक जमीन गंवा चूकी है। उत्तर प्रदेश की अगर बात की जाये तो आवादी के मामले में यह भारत का सबसे बड़ा राज्य होने के बावजूद किसी शक्तिशाली देश से कम नहीं है। 
विश्वपटल पर स्वयं भारत समेत पांच देश ही आवादी के मामले में इससे बड़े है जिनमें चीन, संयुक्त अमेरिका, ब्राजील व इंडोनेशिया है। अब आप को मान लेना चाहिए कि जब इतने बड़े प्रदेश में चुनाव है जो दुनियां के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश का सबसे बड़ा सूबा है तो मुकाबला रोचकता से भरा तो रहेगा। भाजपा को 16वीं लोकसभा के चुनाव में आश्चर्यचकित जीत दिलाने में नायक की भूमिका निभाने वाले स्वयं पीएम मोदी यूपी में जीत दर्ज करने के लिए लगातार बैठक व रैलियां कर रहे है। 

हाल ही में केंद्रीय ग्रह मंत्री राजनाथ सिंह पंश्चिम यूपी के अमरोहा जनपद में यूपी को सपा और बसपा से मुक्त करने का नारा दे चूकें है। लेकिन रैली से दो दिन पहले इसी जनपद की तहसील हसनपुर के किसान कुलदीप ने नौ लाख बैंक कर्ज के तले दबकर आत्महत्या कर ली। परंतु ग्रहमंत्री ने रैली के दौरान एक बार भी उसके परिजनों के आंसू पौछने का काम नहीं किया। इसी तरह प्रदेश में न जाने कितने किसान कर्ज से दबकर आत्महत्या कर रहे है। जिस उत्तर प्रदेश की भूमि पर चुनावी दंगल की तैयारी है। 
उसकी आधी आवादी पानी की बुंद-बुंद को तरसने के बाद दूसरी जगहों पर पलायन के लिए मजबूर हो रही है। लेकिन भाजपा यहां की सूखी जमीन पर कमल की खेती करने की तैयारी में लगी है। उत्तर प्रदेश की सूखी जमीन से धधकते   शोले और कर्ज से दबकर आत्महत्या कर रहे किसानों के परिवारो के आंसू पोछने में जो दल कामयाब होगा वहीं जीत का सफर तय करेगा।

बीते लोकसभा चुनाव में सपा व बसपा का सूपड़ा साफ कर देने वाली भाजपा को अति उत्साह में न आकर बीते डेढ़ दशक के रिकार्ड पर भी गौर करना होगा। जिन पार्टियों से भाजपा का अब मुकाबला होने जा रहा है ये वही बसपा और सपा है जिन्होने 2007  व 2012 के विधानसभा चुनाव में 50 का आंकड़ा भी न छूने दिया था। अगर इन पर्टियों से पार पाना है तो पीएम मोदी को लंबे चौड़े भाषण देने के बजाये गरीब की थाली भरने वाली योजनाओं को चुनाव प्रचार के दौरान जनता के बीच ले जाना होगा।



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