
यूरोपीय टीमों और पाकिस्तान में तेज़ी से हॉकी का स्तर बढ़ रहा था. पहले तीन मैचों में भारत ने अपेक्षाकृत कमज़ोर टीमों अफ़ग़ानिस्तान, अमरीका और सिंगापुर को हराया था. 1956 के मेलबर्न ओलंपिक खेल शुरू होते- होते, पहली बार भारत को हॉकी में चुनौती मिलनी शुरू हो गई थी.
उन जीतों पर सबसे दिलचस्प टिप्पणी करते हुए हिंदू अख़बार ने लिखा था, “पूरे समय ये एकतरफ़ा ट्रैफ़िक था. लेकिन अगर 1932 या 1936 की टीम हमारा प्रतिनिधित्व कर रही होती, तो शायद हमने हॉकी में क्रिकेट का स्कोर बनाया होता. पहले मैच में भारत ने अफ़ग़ानिस्तान को 14-0 से हराया लेकिन भारत को सबसे बड़ा झटका तब लगा जब कप्तान बलबीर सिंह के दाँए हाथ की उंगली टूट गई.
बीबीसी से बात करते हुए बलबीर ने कहा, “मैं अफ़ग़ानिस्तान के ख़िलाफ़ पाँच गोल मार चुका था, तभी मुझे बहुत बुरी चोट लग गई. ऐसा लगा किसी ने मेरी उंगली के नाख़ून पर हथौड़ा चला दिया हो.
शाम को जब एक्स-रे हुआ तो पता चला कि मेरी उंगली में फ़्रैक्चर हुआ है. नाख़ून नीला पड़ गया था और उंगली बुरी तरह से सूज गई थी.”
बलबीर सिंह ने आगे बताया, “हमारे मैनेजर ग्रुप कैप्टेन ओपी मेहरा, चेफ़ डे मिशन एयर मार्शल अर्जन सिंह और भारतीय हॉकी फ़ेडेरेशन के उपाध्यक्ष अश्वनी कुमार के बीच एक मंत्रणा हुई और ये तय किया गया कि मैं बाक़ी के लीग मैचों में नहीं खेलूँगा…
बलबीर सिंह ने आगे बताया, “हमारे मैनेजर ग्रुप कैप्टेन ओपी मेहरा, चेफ़ डे मिशन एयर मार्शल अर्जन सिंह और भारतीय हॉकी फ़ेडेरेशन के उपाध्यक्ष अश्वनी कुमार के बीच एक मंत्रणा हुई और ये तय किया गया कि मैं बाक़ी के लीग मैचों में नहीं खेलूँगा…

सिर्फ़ सेमी फ़ाइनल और फ़ाइनल में मुझे उतारा जाएगा. मेरी चोट की ख़बर को गुप्त रखा जाएगा. वजह ये थी कि दूसरी टीमें मेरे पीछे कम से कम दो खिलाड़ियों को लगाती थीं जिससे दूसरे खिलाड़ियों पर दबाव कम हो जाता था.” भारत ने अमरीका को 16-0 और सिंगापुर को 6-0 से हराया. बलबीर के न खेलने और सिंगापुर के रक्षात्मक हॉकी खेलने की वजह से भारत 23 मिनट तक एक भी गोल नहीं कर पाया.
जर्मनी के ख़िलाफ़ सेमी फ़ाइनल भारत ने बमुश्किल 1-0 से जीता. लेकिन हॉकी पंडितों ने नोट किया कि भारत अब हॉकी में वो ताक़त नहीं रहा जो वो पहले हुआ करता था. बलबीर सिंह ने अपनी आत्मकथा, द गोल्डन हैट्रिक में लिखा, “हरबैल सिंह को मैं अपने ख़ालसा कालेज के दिनों से ही अपना गुरू मानता था.
कभी बहला कर, कभी मना कर और कभी डाँट कर भी. लेकिन मुझ पर कोई असर नहीं हुआ. मुझे लगा कि मैं ऐसा कप्तान हूँ जिसने डूबते हुए जहाज़ को छोड़ दिया है. मुझे बार-बार एक सपना आता था. मैं एक गोलकीपर के सामने खड़ा हूँ. वो मुझ पर हंस रहा है और बार-बार मुझसे कह रहा है…अगर हिम्मत है तो गोल मारो.”

0 comments:
Post a Comment