
कहते है कि परिवार टूटने का दर्द महिलाओं से बेहतर कौन जान सकता है. पेट की भूख, नौकरी के सीमित विकल्प, बच्चों की परवरिश, शादी के सामाजिक बंधन के छूटने के बाद मर्दों की घूरती निगाहें…
जिंदगी की इन्हीं परेशानियों को ध्यान में रखते हुए एक सर्वे किया गया – मुस्लिम महिलाओं का – इनमें से 92.1 फीसदी एकतरफा तलाक को गलत मानती हैं. मुंबई में एक संस्था है – भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन. संस्था के अनुसार यह मुस्लिम महिलाओं के हक और अधिकार के लिए काम करती है.
इसी संस्था ने यह सर्वे कराया है. सर्वे में 4500 महिलाओं ने हिस्सा लिया और ये सभी विभिन्न आय समूहों तथा व्यवसाय (गृहिणी भी) से जुड़ी हैं.
सर्वे से एक बात यह निकलकर आई है कि तलाक के ही संबंध में. 88.3 फीसदी मुस्लिम महिलाएं ‘तलाक-तलाक-तलाक’ के बजाय सिर्फ ‘तलाक’ को बेहतर मानती हैं. चौंकिए मत. दोनों तलाक ही होते हैं, बस तरीका अलग-अलग होता है. ‘तलाक-ए-अहसान’ में तलाक सिर्फ एक बार बोला जाता है और इसमें अगर दोनों पक्ष राजी हुए तो तलाक के बाद फिर से पति-पत्नी एक साथ रह सकते हैं.
जी हाँ लेकिन ‘तलाक-तलाक-तलाक’ में यह संभव नहीं है और न ही इसमें महिलाओं के पक्ष को ठीक से रखा जाता है. तलाक के अलावा इन मुस्लिम महिलाओं ने एक और चीज पर अपनी बात बहुत मजबूती से रखीं और वो है – बहुविवाह. सर्वे में भाग लेने वाली 91.2 फीसदी महिलाएं अपने पति को बांटना नहीं चाहती हैं, मतलब वे बहुविवाह के खिलाफ हैं.
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) का कहना है कि मौखिक तलाक (तलाक-तलाक-तलाक) को बनाए रखने की जरूरत है. उन्होंने इसके लिए हिंदू समाज में होने वाली दहेज-हत्या का उदाहरण दिया. उनका कहना है कि असफल शादी में बने रहने के दबाव के कारण हत्याएं होती हैं.
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