कैसे रोजा रखें, यहां तो कमबख्त सूरज डूबता ही नहीं


पाक महीना रमजान की बधाई और मेरे सऊदी दोस्तों को रमादान की. शब्दों में क्या रखा है, जो जी चाहे कहें. अब आप ही देखिए धरती के उत्तरी ध्रुव पर एक देश है नॉर्वे. यहां सूरज नहीं ढ़लता क्योंकि यह लैंड ऑफ मिडनाइट सन जो ठहरा.
यहां भी रमजान का पर्व मनाया जा रहा है. यह पर्व सीरिया में बरसती मौत की मिसाइलों के बीच भी मनाया जा रहा है. जहां इस बात की कोई गारंटी नहीं कि सुबह रखे रोजे को शाम की इफ्तारी नसीब होगी या उससे पहले कोई ड्रोन या इस्लामिक स्टेट के लड़ाकों की एके47 आपको निशाना बना लेगी.
इस पर्व को चीन के मुस्लिम बाहुल उइघर प्रांत में सरकारी पाबंदी के बीच भी मनाया जा रहा है. हालांकि वहां अगर किसी सरकारी कर्मचारी को रमजान मनाते पकड़ लिया गया तो नौकरी गंवाने के साथ-साथ रमजान के पूरे महीने तक जेल की सलाखों के पीछे रहना पड़ेगा. और इसे नई दिल्ली में 43 डिग्री तापमान के बीच भी मनाया जा रहा है जहां बिजली की कटौती और पानी की सप्लाई बाधित होने के खतरे के बीच मानसून के जल्द दस्तक देने की उम्मीद बंधी है.
 नार्वे की बैतून नस्र मस्जिद
बहरहाल, दुनिया के हर कोने पर रमजान के इस पावन पर्व के सामने कुछ न कुछ चुनौती है या कह लें कि खुदा इम्तेहान ले रहा है. लेकिन इन सब में सबसे अहम चुनौती नार्वे की है क्योंकि प्राय: यहां सूरज डूबने के इंतजार में तारीख बदल जाती है और सूरज अपनी जगह से टस से मस नहीं होता. फिलहाल, इस साल यहां दिन के लगभग 20 घंटों तक सूरज आसमान में बना रहता है.
नॉर्व में दो लाख के आसपास मुसलमान हैं जो बीते तीन दशकों के दौरान खाड़ी देशों में जारी मारकाट, सोमालिया के वायलेंस कल्चर और पाकिस्तान के तालिबान कनेक्शन के चलते भागकर यहां चले आए. अब इतने लोग यहां हैं तो इबादत के लिए मस्जिद होना लाजमी है. रमजान के पाक महीने की शुरुआत करते हुए नॉर्वे की मस्जिदों पर लटके लाउडस्पीकर सुबह पांच बजे के आसपास अजान देकर ऐलान कर देते हैं कि रोजा रखने का वक्त शुरू हो गया है. इस अजान से पहले लोगबान शहरी वगैरह कर करा तैयार हो जाते हैं कि दिनभर अब मुंह में निवाला तो दूर थूक भी नहीं निगला जाएगा. फिर इंतजार सूरज ढ़लने पर उस अजान का जो यह बताएगा कि अब रोजा इफ्तार करने का समय हो चुका है. यह इंतजार यहां लंबा है क्योंकि सूरज तो दिन के 20 घंटे यहां चमकता ही रहता है.
अब यहां रह रहे मुसलमानों के बीच बड़ी दुविधा है कि वह सूरज उगने से लेकर सूरज ढ़लने तक रोजा रखने के अपने इस पर्व को यहां कैसे मनाएं? क्या उन्हें दिन के 20 घंटे तक बिना खाए पिए रहना होगा या उनकी इस दुविधा के लिए कोई बीच का रास्ता निकाला जा सकता है? अब इस्लामिक हदिथ के मुताबिक रमजान के पाक महीने में सच्चे मुसलमान को दिन के वक्त उपवास रखने और रात के वक्त इबादत करने को अल्लाह ने कम्पलसरी कर रखा है. लिहाजा, नॉर्वे और आसपास के कुछ देशों में मुसलमानों को 20 घंटे से अधिक रोजा रखना पड़ रहा है और बचे हुए 2-3 घंटे अगले दिन के रोजे की तैयारी में लगाना पड़ रहा है.
दरअसल रमजान की तारीख लूनर कैलेंडर से निर्धारित होती है इसलिए हर साल यह पर्व 11 दिन आगे बढ़ जाता है. लिहाजा बीते 2 साल के दौरान ही रमजान का महीना गर्मी के उस समय पर पहुंच गया है जब दिन के महज 2-3 घंटे के लिए यहां सूरज अस्त होता है. इससे पहले गर्मी में रमजान 1980 के दशक में पड़ा था लेकिन उस वक्त यहां मुसलमान जनसंख्या न के बराबर थी. अब इस बात पर ज्यादातर मुस्लिम लीडर भी एकमत हैं कि हदिथ के मुताबिक ऐसे इलाकों में रह रहे मुसलमानों को सूरज डूबने तक रोजा जारी रखना होगा. वहीं कुछ मुसलमानों ने कोशिश की कि वे साउदी अरब से फतवा करा लें कि उन्हें मक्का के समय के मुताबिक रोजा रखने की इजाजत मिल जाए. लेकिन ऐसा नहीं हो सका और उनके सामने चुनौती जस की तस है कि किस तरह दिन के 20 घंटे से अधिक समय तक बिना खाए पिए पूरे एक महीने इस पर्व को मनाएं. उम्मीद है इबादत इतनी शक्ति दे कि यह महीना कैसे बीत गया पता न चले. इसी के साथ एक बार फिर रमजान मुबारक और सऊदी के दोस्तों को रमजान मुबारक.


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पाक महीना रमजान की बधाई और मेरे सऊदी दोस्तों को रमादान की. शब्दों में क्या रखा है, जो जी चाहे कहें. अब आप ही देखिए धरती के उत्तरी ध्रुव पर एक देश है नॉर्वे. यहां सूरज नहीं ढ़लता क्योंकि यह लैंड ऑफ मिडनाइट सन जो ठहरा.
यहां भी रमजान का पर्व मनाया जा रहा है. यह पर्व सीरिया में बरसती मौत की मिसाइलों के बीच भी मनाया जा रहा है. जहां इस बात की कोई गारंटी नहीं कि सुबह रखे रोजे को शाम की इफ्तारी नसीब होगी या उससे पहले कोई ड्रोन या इस्लामिक स्टेट के लड़ाकों की एके47 आपको निशाना बना लेगी.
इस पर्व को चीन के मुस्लिम बाहुल उइघर प्रांत में सरकारी पाबंदी के बीच भी मनाया जा रहा है. हालांकि वहां अगर किसी सरकारी कर्मचारी को रमजान मनाते पकड़ लिया गया तो नौकरी गंवाने के साथ-साथ रमजान के पूरे महीने तक जेल की सलाखों के पीछे रहना पड़ेगा. और इसे नई दिल्ली में 43 डिग्री तापमान के बीच भी मनाया जा रहा है जहां बिजली की कटौती और पानी की सप्लाई बाधित होने के खतरे के बीच मानसून के जल्द दस्तक देने की उम्मीद बंधी है.
 नार्वे की बैतून नस्र मस्जिद
बहरहाल, दुनिया के हर कोने पर रमजान के इस पावन पर्व के सामने कुछ न कुछ चुनौती है या कह लें कि खुदा इम्तेहान ले रहा है. लेकिन इन सब में सबसे अहम चुनौती नार्वे की है क्योंकि प्राय: यहां सूरज डूबने के इंतजार में तारीख बदल जाती है और सूरज अपनी जगह से टस से मस नहीं होता. फिलहाल, इस साल यहां दिन के लगभग 20 घंटों तक सूरज आसमान में बना रहता है.
नॉर्व में दो लाख के आसपास मुसलमान हैं जो बीते तीन दशकों के दौरान खाड़ी देशों में जारी मारकाट, सोमालिया के वायलेंस कल्चर और पाकिस्तान के तालिबान कनेक्शन के चलते भागकर यहां चले आए. अब इतने लोग यहां हैं तो इबादत के लिए मस्जिद होना लाजमी है. रमजान के पाक महीने की शुरुआत करते हुए नॉर्वे की मस्जिदों पर लटके लाउडस्पीकर सुबह पांच बजे के आसपास अजान देकर ऐलान कर देते हैं कि रोजा रखने का वक्त शुरू हो गया है. इस अजान से पहले लोगबान शहरी वगैरह कर करा तैयार हो जाते हैं कि दिनभर अब मुंह में निवाला तो दूर थूक भी नहीं निगला जाएगा. फिर इंतजार सूरज ढ़लने पर उस अजान का जो यह बताएगा कि अब रोजा इफ्तार करने का समय हो चुका है. यह इंतजार यहां लंबा है क्योंकि सूरज तो दिन के 20 घंटे यहां चमकता ही रहता है.
अब यहां रह रहे मुसलमानों के बीच बड़ी दुविधा है कि वह सूरज उगने से लेकर सूरज ढ़लने तक रोजा रखने के अपने इस पर्व को यहां कैसे मनाएं? क्या उन्हें दिन के 20 घंटे तक बिना खाए पिए रहना होगा या उनकी इस दुविधा के लिए कोई बीच का रास्ता निकाला जा सकता है? अब इस्लामिक हदिथ के मुताबिक रमजान के पाक महीने में सच्चे मुसलमान को दिन के वक्त उपवास रखने और रात के वक्त इबादत करने को अल्लाह ने कम्पलसरी कर रखा है. लिहाजा, नॉर्वे और आसपास के कुछ देशों में मुसलमानों को 20 घंटे से अधिक रोजा रखना पड़ रहा है और बचे हुए 2-3 घंटे अगले दिन के रोजे की तैयारी में लगाना पड़ रहा है.
दरअसल रमजान की तारीख लूनर कैलेंडर से निर्धारित होती है इसलिए हर साल यह पर्व 11 दिन आगे बढ़ जाता है. लिहाजा बीते 2 साल के दौरान ही रमजान का महीना गर्मी के उस समय पर पहुंच गया है जब दिन के महज 2-3 घंटे के लिए यहां सूरज अस्त होता है. इससे पहले गर्मी में रमजान 1980 के दशक में पड़ा था लेकिन उस वक्त यहां मुसलमान जनसंख्या न के बराबर थी. अब इस बात पर ज्यादातर मुस्लिम लीडर भी एकमत हैं कि हदिथ के मुताबिक ऐसे इलाकों में रह रहे मुसलमानों को सूरज डूबने तक रोजा जारी रखना होगा. वहीं कुछ मुसलमानों ने कोशिश की कि वे साउदी अरब से फतवा करा लें कि उन्हें मक्का के समय के मुताबिक रोजा रखने की इजाजत मिल जाए. लेकिन ऐसा नहीं हो सका और उनके सामने चुनौती जस की तस है कि किस तरह दिन के 20 घंटे से अधिक समय तक बिना खाए पिए पूरे एक महीने इस पर्व को मनाएं. उम्मीद है इबादत इतनी शक्ति दे कि यह महीना कैसे बीत गया पता न चले. इसी के साथ एक बार फिर रमजान मुबारक और सऊदी के दोस्तों को रमजान मुबारक.



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