भारत मुल्क में ऐसे वीरो ने जन्म लिया है जिन्होंने अपने देश के लिए अंग्रेज़ो से फांसी खा ली लेकिन अपने साथियो के नाम नहीं बताये ऐसे ही वीर पुरुषों में से एक है पीर अली खान जिन्होंने 1757 ई. से लेकर 1947 ई. तक बिहार में अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह किया।
जी हाँ आपको बतादे बिहार में 1757 ई. से ही ब्रिटिश विरोधी संघर्ष प्रारम्भ हो गया था। यहाँ के स्थानीय जमींदारों, क्षेत्रीय शासकों, युवकों एवं विभिन्न जनजातियों तथा कृषक वर्ग ने अंग्रेजों के खिलाफ अनेकों बार संघर्ष या विद्रोह किया। बिहार के स्थानीय लोगों द्वारा अंग्रेजों के खिलाफ संगठित या असंगठित रूप से विद्रोह चलता रहा, जिनके फलस्वरूप अनेक विद्रोह हुए।
पटना के नागरिकों ने कुछ वर्ष से ही क्रांति की तैयार शुरू कर दी थी, इसके लिए संगठन स्थापित किए जा चुके थे, जिसमें शहर के व्यवसायी एवं धनी वर्ग के लोग सम्मिलित थे। पटना के कुछ मौलवियों का लखनऊ के गुप्त संगठनों से पत्र व्यवहार चल रहा था। उनका दानापुर के सैनिकों से भी संपर्क हो चुका था। ऐसा प्रतीत होता है कि पुलिस वाले भी क्रांतिकारियों का सहयोग कर रहे थे।
857 ई. की क्रान्ति की शुरुआत बिहार में 12 जून 1857 को देवधर जिले के रोहिणी नामक स्थान से हुई थी। यहाँ 32वीं इनफैन्ट्री रेजीमेण्ट का मुख्यालय था एवं पाँचवीं अनियमित घुड़सवार सेना का मेजर मैक्डोनाल्ड भी यहीं तैनात था।
12 जून 1857 को अजीमुल्लाह खाँ के मुखबिरों के ज़रिये मेरठ में हुई सिपाहियों की बगावत एवं उनकी शहादत की खबर जैसे ही रोहिणी के फौजी छावनी में पहुंची, इन तीनो सिपाहियों ने बग़ावत का बिगुल फूंक दिया. इस विद्रोह में तीन सैनिक सम्मिलित थे जिनका नाम शहीद अमानत अली, शहीद सलामत अली और शहीद शेख हारो था, ये तीनों 1857 के दौरान अस्थायी 5वीं घुड़सवार फ़ौज में सिपाही के हैसियत से तैनात थे.
पटना के कमिश्नर एस. टेलर का यह मानना था कि बिहार में क्रांति का प्रसार निश्चित रूप से होगा। अतः उसने पुरे बिहार में सी.आई.डी. का जाल बिछा दिया। इसी समय उसे यह सूचना प्राप्त हुई कि तिरहुत ज़िले का पुलिस जमादार वारिस अली ब्रितानियों का विरोध कर रहे हैं। उन्होंने क्रांतिकारियों से अपना संपर्क स्थापित कर रखा था। एक सरकारी पदाधिकारी का विद्रोहियों का साथ देना सरकार की नज़र में राजद्रोह था। सरकारी आदेश से उनके मकान को घेर लिया गया, उस समय वे गया के अली करीम नामक क्रांतिकारी को पत्र लिख रहे थे। इस छापे में उनके घर से बहुत आपत्तिजनक पत्र प्राप्त हुए।
शेर अली खान यही नाम है उस महान देशभक्त का …जिसने ब्रितानी हुकूमत के पालतू कुत्ते वायसराय ” लार्ड म्यो” को क्रन्तिकारी देशभक्तों के लिए बनवाई गई सेलुलर जेल ( काला पानी ),, में खंजर से चीड कर गीदड़ की मौत मार गिराया था … वायसराय लार्ड म्यो .6 फरवरी 1872 को अंडमान स्थित सेलुलर जेल ( काला पानी ) का मुआयना करने पहुंचा था ..21 तोपों की सलामी के साथ उसका भव्य स्वागत हुआ.
तीनों शहीदों ने यहाँ तैनात मेजर मैकडोनाल्ड एवं उनके दो साथी अफसर नार्मन लेसली तथा डॉ. ग्रांट को उनके घर पर चाय पीते हुए घेर लिया. लेसली इस हमले में मारा गया लेकिन अन्य दो घायल वहां से भागलपुर मुख्यालय भागने में सफल रहे. भागलपुर मुख्यालय ने इसके बाद और फ़ौज भेजकर रोहिणी के सिपाही विद्रोह को बर्बरतापूर्वक कुचल दिया. रोहिणी में ही इन तीनों सैनिकों का कोर्ट मार्शल हुआ और 16 जून 1857 को आम के पेड़ पर लटकाकर फांसी दे दी गई थी.
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