जब पुरुष और स्त्री की संतानोत्पादन शक्ति के अभाव को नपुंसक्ता अथवा नामदीर कहते हैं। चंद्रमा, मंगल, सूर्य और लग्न से गर्भाधान का विचार किया जाता है। किन्नर भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे देशों में एका कौतूहल का विषय हैं। इनके नाजो-नखरे देख अक्सर लोग हंस पड़ते हैं.
बंगलौर में जहां हर साल पूरे दक्षिण भारत के किन्नर अपने सालाना उत्सव मनाने के लिए जमा होते हैं। बंगलौर में दो हजार किन्नर रहते हैं जबकि भारत में इनकी संख्या पांच से दस लाख के बीच मानी जाती है। किन्नर उस समाज तक यह संदेश पहुँचाना चाहते हैं, जो उन्हें अपने से अलग समझता है।
आपने देखा होगा कि बाजारों सड़कों गलियों चौक चौराहों से लेकर बस ट्रेंन तक में ताली बजा बजा कर गाके फिर पैसे मांगते है। और लोग तरह तरह के ताने मारते रहते हैं फब्तियां कसते है। इतना ही नही इनको समाज में कितनी उपेक्षित नजरों से देखा जाता है।
। मगर किन्नर बनते कैसे हैं? इनका जन्म कैसे होता है? अगर आप इनकी जिंदगी की असलियत जान ले तो शायद न किसी को हंसी आए और न ही उनसे घबराहट हो। वीर्य की अधिकता से पुरुष (पुत्र) होता है। रक्त की अधिकता से स्त्री (कन्या) होती है। शुक्र शोणित (रक्त और रज) का साम्य (बराबर) होने से नपुंसका का जन्म होता है।
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