इन लापरवाहियों के काऱण हुआ इतना बड़ा दंगा


मथुरा के सबसे बड़े सार्वजनिक पार्क को हथियारों का गोदाम बनाया गया. बिजली और पानी की चोरी की गई. लगभग 268 एकड़ सरकारी जमीन पर कब्जा कर लिया गया. लेकिन पुलिस प्रशासन सोता रहा. दो साल से जंग लड़ने की तैयारी होती रही. पेड़ों पर मचान बनाए गए. जमीन में बंकर खोदे गए. मगर खुफिया विभाग सोता रहा

महज दो साल के भीतर मथुरा में इतनी बड़ी साजिश की योजना बनाई गई. लेकिन किसी को इसकी भनक नहीं लगी. मथुरा पुलिस की फाइलों में उनके खिलाफ आपराधिक रिकॉर्ड मौजूद हैं, जो किसी से छिपे नहीं हैं. उनमें हत्या के प्रयास, हमले, अपहरण, धमकी और भूमि हथियाने के मुकदमें शामिल हैं. दरअसल सरकारी जमीन पर कब्जा करना भारत में आम बात है. लेकिन मथुरा के जवाहर बाग में कब्जा जमाने वाले कोई साधारण अतिक्रमणकारी नहीं थे. लेकिन पुलिस वहां अदालत के आदेश पर अवैध कब्जा हटाने पहुंच गई और वो भी बिना किसी पूर्व सर्वेक्षण और तैयारी के पार्क पर कब्जा जमाए बैठे लोगों ने विरोधी नजरिए के चलते ही पुलिस टीम पर खूनी हमला किया. पेड़ों से फायरिंग की गई और पुलिसकर्मियों पर ग्रेनेड फेंके गए. दरअसल, पिछले दो वर्षों में जवाहर बाग एक अस्पष्ट पंथ के कार्यकर्ताओं का ठिकाना बन गया था, जो खुद को सत्याग्रही कहते थे. वे उस पार्क के अंदर अपना निजाम चला रहे थे. फिर भी भारत के सबसे अधिक आबादी वाले राज्य की कानूनी एजेंसियों को सिर्फ यह विचार आया कि पार्क हथियारों और आक्रामक ठगों के लिए एक घर बन गया था.

मथुरा में गुरुवार को हुए खूनी संघर्ष ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया. उत्तर प्रदेश के पुलिस प्रमुख जावीद अहमद ने कहा कि पार्क का निरीक्षण करने पहुंची पुलिस टीम को इस बात अंदाजा नहीं था कि पार्क पर कब्जा जमाए बैठे लोग इतनी भारी संख्या में हथियारों से लैस होंगे. इस खूनी झड़प के दौरान मथुरा ने एक पुलिस अधीक्षक और एक स्टेशन हाउस अधिकारी को खो दिया. डीजीपी ने कहा कि हमलावरों ने बिना किसी उकसावे के हमला कर दिया. बदमाशों ने हमले में गैस सिलेंडरों सहित विस्फोटक सामग्री का इस्तेमाल भी किया. उन्होंने पेड़ों पर चढ़कर फायरिंग की.


पुलिस की असफलता


उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक दलजीत सिंह चौधरी ने जवाहर बाग में धीरे-धीरे किए गए अतिक्रमण के मामले में पुलिस-प्रशासन की विफलता को स्वीकार किया. उन्होंने एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि खुफिया विभाग की विफलता ने आरोपियों को पुलिस पर हमला करने में मदद की. हालांकि, अधिकारियों ने इलाके की वीडियो बनाने और कब्जाधारियों की सही ताकत का आकलन करने के लिए एक ड्रोन कैमरा उड़ाया था. लेकिन वह डिवाइस एक पेड़ में फंस गया और तस्वीरें भेजने में नाकाम रहा. फिर भी पुलिस उनकी टोह लेने के लिए आगे बढ़ गई.


जब आम जनता और सहयोगियों एसपी मुकुल दि्वेदी को श्रद्धांजलि देने के लिए पहुंचे तो वहां माहौल में उदासी साफ झलक रही थी. उत्तर प्रदेश पुलिस के एडीजी कानून-व्यवस्था और प्रमुख सचिव सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर वहां मौजूद थे. हालांकि सरकार का कोई बड़ा मंत्री हताहतों के आंकड़े बढ़कर 24 हो जाने के बावजूद वहां मौजूद नहीं था


उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक जावीद अहमद ने मथुरा में एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि सभी हमलावरों के खिलाफ एनएसए के तहत मामला दर्ज किया जाएगा. 320 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया है और इस संप्रदाय के संस्थापक राम वृक्ष यादव समेत तीन मुख्य आरोपी अभी भी फरार हैं. इस हिंसा की पृष्ठभूमि में राजनीतिक दलों के नेताओं ने एक दूसरे पर एक भयंकर हमले शुरू कर दिए हैं. इस कड़ी में गृह मंत्री राजनाथ सिंह पहले थे जिन्होंने ट्वीट किया कि उन्होंने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को फोन किया और मदद की पेशकश की


लेकिन उनके सहयोगी किरण रिजिजू ने जल्द ही संकेत दे दिया कि यह सब राज्य सरकार की चूक के कारण हुआ है. इसके बाद बैक फुट पर आए यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और रक्षात्मक हो गए और उन्होंने निष्पक्ष जांच की बात कही है.
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मथुरा के सबसे बड़े सार्वजनिक पार्क को हथियारों का गोदाम बनाया गया. बिजली और पानी की चोरी की गई. लगभग 268 एकड़ सरकारी जमीन पर कब्जा कर लिया गया. लेकिन पुलिस प्रशासन सोता रहा. दो साल से जंग लड़ने की तैयारी होती रही. पेड़ों पर मचान बनाए गए. जमीन में बंकर खोदे गए. मगर खुफिया विभाग सोता रहा

महज दो साल के भीतर मथुरा में इतनी बड़ी साजिश की योजना बनाई गई. लेकिन किसी को इसकी भनक नहीं लगी. मथुरा पुलिस की फाइलों में उनके खिलाफ आपराधिक रिकॉर्ड मौजूद हैं, जो किसी से छिपे नहीं हैं. उनमें हत्या के प्रयास, हमले, अपहरण, धमकी और भूमि हथियाने के मुकदमें शामिल हैं. दरअसल सरकारी जमीन पर कब्जा करना भारत में आम बात है. लेकिन मथुरा के जवाहर बाग में कब्जा जमाने वाले कोई साधारण अतिक्रमणकारी नहीं थे. लेकिन पुलिस वहां अदालत के आदेश पर अवैध कब्जा हटाने पहुंच गई और वो भी बिना किसी पूर्व सर्वेक्षण और तैयारी के पार्क पर कब्जा जमाए बैठे लोगों ने विरोधी नजरिए के चलते ही पुलिस टीम पर खूनी हमला किया. पेड़ों से फायरिंग की गई और पुलिसकर्मियों पर ग्रेनेड फेंके गए. दरअसल, पिछले दो वर्षों में जवाहर बाग एक अस्पष्ट पंथ के कार्यकर्ताओं का ठिकाना बन गया था, जो खुद को सत्याग्रही कहते थे. वे उस पार्क के अंदर अपना निजाम चला रहे थे. फिर भी भारत के सबसे अधिक आबादी वाले राज्य की कानूनी एजेंसियों को सिर्फ यह विचार आया कि पार्क हथियारों और आक्रामक ठगों के लिए एक घर बन गया था.

मथुरा में गुरुवार को हुए खूनी संघर्ष ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया. उत्तर प्रदेश के पुलिस प्रमुख जावीद अहमद ने कहा कि पार्क का निरीक्षण करने पहुंची पुलिस टीम को इस बात अंदाजा नहीं था कि पार्क पर कब्जा जमाए बैठे लोग इतनी भारी संख्या में हथियारों से लैस होंगे. इस खूनी झड़प के दौरान मथुरा ने एक पुलिस अधीक्षक और एक स्टेशन हाउस अधिकारी को खो दिया. डीजीपी ने कहा कि हमलावरों ने बिना किसी उकसावे के हमला कर दिया. बदमाशों ने हमले में गैस सिलेंडरों सहित विस्फोटक सामग्री का इस्तेमाल भी किया. उन्होंने पेड़ों पर चढ़कर फायरिंग की.


पुलिस की असफलता


उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक दलजीत सिंह चौधरी ने जवाहर बाग में धीरे-धीरे किए गए अतिक्रमण के मामले में पुलिस-प्रशासन की विफलता को स्वीकार किया. उन्होंने एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि खुफिया विभाग की विफलता ने आरोपियों को पुलिस पर हमला करने में मदद की. हालांकि, अधिकारियों ने इलाके की वीडियो बनाने और कब्जाधारियों की सही ताकत का आकलन करने के लिए एक ड्रोन कैमरा उड़ाया था. लेकिन वह डिवाइस एक पेड़ में फंस गया और तस्वीरें भेजने में नाकाम रहा. फिर भी पुलिस उनकी टोह लेने के लिए आगे बढ़ गई.


जब आम जनता और सहयोगियों एसपी मुकुल दि्वेदी को श्रद्धांजलि देने के लिए पहुंचे तो वहां माहौल में उदासी साफ झलक रही थी. उत्तर प्रदेश पुलिस के एडीजी कानून-व्यवस्था और प्रमुख सचिव सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर वहां मौजूद थे. हालांकि सरकार का कोई बड़ा मंत्री हताहतों के आंकड़े बढ़कर 24 हो जाने के बावजूद वहां मौजूद नहीं था


उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक जावीद अहमद ने मथुरा में एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि सभी हमलावरों के खिलाफ एनएसए के तहत मामला दर्ज किया जाएगा. 320 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया है और इस संप्रदाय के संस्थापक राम वृक्ष यादव समेत तीन मुख्य आरोपी अभी भी फरार हैं. इस हिंसा की पृष्ठभूमि में राजनीतिक दलों के नेताओं ने एक दूसरे पर एक भयंकर हमले शुरू कर दिए हैं. इस कड़ी में गृह मंत्री राजनाथ सिंह पहले थे जिन्होंने ट्वीट किया कि उन्होंने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को फोन किया और मदद की पेशकश की


लेकिन उनके सहयोगी किरण रिजिजू ने जल्द ही संकेत दे दिया कि यह सब राज्य सरकार की चूक के कारण हुआ है. इसके बाद बैक फुट पर आए यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और रक्षात्मक हो गए और उन्होंने निष्पक्ष जांच की बात कही है.

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