जानें क्यों देश की सबसे पुरानी पार्टी के नेता छोड़ रहे हैं पार्टी का साथ

मई 2014 से कांग्रेस पार्टी के बुरे दिन क्या आ गये अब उसे अपने ही लोगों ने साथ छोड़ना शुरु कर दिया है। जिन नेताओं ने कभी काग्रेस के लिए दिन रात एक करके एक मिशन के तौर पर काम किया आज वही नेता कांग्रेस का दामन छोड़ना शुरु कर दिया है । और कुछ लोग तो पार्टी के कामो में शामिल होना और पार्टी के लिए रणनिति बनाने का काम किया करते थे । वो लोग आज आज पार्टा के आस पास भी नही भटकते । हाल ही में कांग्रेस की वरिष्ठ नेता रीता बहुगुणा जोशी ने कांग्रस का दामन छोड़कर समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया है । और इसके बाद छत्तीसगढ के पुर्व सीएम अजीत जोगी ने तो अगल पार्टी बनाने का मन बना लिया है। लेकिन एक बार फिर कांग्रेस को बड़ा झटका दे दिया पूर्व केंद्रीय मंत्री और मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष गुरुदास कामत के राजनीति से संन्यास लेने की घोषणा को कांग्रेस के लिए एक और बड़ा झटका माना जा रहा है, हालांकि कांग्रेस के बड़े नेताओं की ओर से अभी प्रतिक्रिया नहीं मिली है.
उत्तराखंड, अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़ की राज्य इकाइयों में बाग़ी तेवरों से कांग्रेस पहले ही उबर नहीं पाई थी कि अब ये ताज़ा ख़बर आई है.
माना जा रहा है कि अगले साल होने वाले महत्वपूर्ण मुंबई नगरपालिका चुनाव से पहले कामत के इस्तीफ़े से कांग्रेस की उम्मीदों को चोट पहुंचेगी.
मुंबई से पत्रकार अश्विन अघोर के अनुसार कहा जा रहा है कि कामत की नाराज़गी की वजह है महाराष्ट्र से पी चिदंबरम की राज्य सभा की उम्मीदवारी जिससे कई स्थानीय नेता भी ख़ुश नहीं हैं.
रिपोर्टों में ये भी कहा जा रहा है कि गुरुदास कामत पूर्व शिवसैनिक और मुंबई कांग्रेस प्रमुख संजय निरुपम के पार्टी में बढ़ते क़द से ख़ुश नहीं थे.
लेखक पत्रकार रशीद किदवई ने से कहा कि एक तरफ़ जहां कांग्रेस में नेतृत्व को लेकर प्रश्नचिह्न बना हुआ है तो दूसरी और कांग्रेस का एक बड़ा तबक़ा राहुल गांधी को अध्यक्ष बनाने का विरोध कर रहा है जिससे कांग्रेस जनों में निराशा है और उन्हें लगता है कि पार्टी में कुछ नहीं बदलेगा और इस बात को सोनिया और राहुल गांधी “ठीक से समझ नहीं पा रहे हैं.”
वो कहते हैं, “ये चीज़ अभी और होगी. उत्तर प्रदेश में बेनी प्रसाद वर्मा जा चुके हैं.”
गुरुदास कामत के राजनीतिक भविष्य पर किदवई कहते हैं, “वो राजीव गांधी के बहुत क़रीब थे. पार्टी के अंदर वो लोकप्रिय नेता रहे हैं. मुझे लगता है कि अभी वो किसी राजनीतिक दल में नहीं शामिल होंगे. उनकी साफ़ सुथरी छवि है. वो शिवेसना में तो नहीं जाएंगे लेकिन बाक़ी दल कोशिश करेंगे कि वो उनमें शामिल हो जाएं. 
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मई 2014 से कांग्रेस पार्टी के बुरे दिन क्या आ गये अब उसे अपने ही लोगों ने साथ छोड़ना शुरु कर दिया है। जिन नेताओं ने कभी काग्रेस के लिए दिन रात एक करके एक मिशन के तौर पर काम किया आज वही नेता कांग्रेस का दामन छोड़ना शुरु कर दिया है । और कुछ लोग तो पार्टी के कामो में शामिल होना और पार्टी के लिए रणनिति बनाने का काम किया करते थे । वो लोग आज आज पार्टा के आस पास भी नही भटकते । हाल ही में कांग्रेस की वरिष्ठ नेता रीता बहुगुणा जोशी ने कांग्रस का दामन छोड़कर समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया है । और इसके बाद छत्तीसगढ के पुर्व सीएम अजीत जोगी ने तो अगल पार्टी बनाने का मन बना लिया है। लेकिन एक बार फिर कांग्रेस को बड़ा झटका दे दिया पूर्व केंद्रीय मंत्री और मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष गुरुदास कामत के राजनीति से संन्यास लेने की घोषणा को कांग्रेस के लिए एक और बड़ा झटका माना जा रहा है, हालांकि कांग्रेस के बड़े नेताओं की ओर से अभी प्रतिक्रिया नहीं मिली है.
उत्तराखंड, अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़ की राज्य इकाइयों में बाग़ी तेवरों से कांग्रेस पहले ही उबर नहीं पाई थी कि अब ये ताज़ा ख़बर आई है.
माना जा रहा है कि अगले साल होने वाले महत्वपूर्ण मुंबई नगरपालिका चुनाव से पहले कामत के इस्तीफ़े से कांग्रेस की उम्मीदों को चोट पहुंचेगी.
मुंबई से पत्रकार अश्विन अघोर के अनुसार कहा जा रहा है कि कामत की नाराज़गी की वजह है महाराष्ट्र से पी चिदंबरम की राज्य सभा की उम्मीदवारी जिससे कई स्थानीय नेता भी ख़ुश नहीं हैं.
रिपोर्टों में ये भी कहा जा रहा है कि गुरुदास कामत पूर्व शिवसैनिक और मुंबई कांग्रेस प्रमुख संजय निरुपम के पार्टी में बढ़ते क़द से ख़ुश नहीं थे.
लेखक पत्रकार रशीद किदवई ने से कहा कि एक तरफ़ जहां कांग्रेस में नेतृत्व को लेकर प्रश्नचिह्न बना हुआ है तो दूसरी और कांग्रेस का एक बड़ा तबक़ा राहुल गांधी को अध्यक्ष बनाने का विरोध कर रहा है जिससे कांग्रेस जनों में निराशा है और उन्हें लगता है कि पार्टी में कुछ नहीं बदलेगा और इस बात को सोनिया और राहुल गांधी “ठीक से समझ नहीं पा रहे हैं.”
वो कहते हैं, “ये चीज़ अभी और होगी. उत्तर प्रदेश में बेनी प्रसाद वर्मा जा चुके हैं.”
गुरुदास कामत के राजनीतिक भविष्य पर किदवई कहते हैं, “वो राजीव गांधी के बहुत क़रीब थे. पार्टी के अंदर वो लोकप्रिय नेता रहे हैं. मुझे लगता है कि अभी वो किसी राजनीतिक दल में नहीं शामिल होंगे. उनकी साफ़ सुथरी छवि है. वो शिवेसना में तो नहीं जाएंगे लेकिन बाक़ी दल कोशिश करेंगे कि वो उनमें शामिल हो जाएं. 

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