भारत 2009 से चीन के साथ दोस्ती का रिश्ता निभाता आ रहा है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण ये है कि आज भी चीन को भारत ऩे अपने बाजार में जगह दी हुई है. इससे चीन को कई हजार करोड़ रुपए की आमदनी होती है।
लेकिन चीन का रवैया हमेशा यही रहा है, कि आम खाना है. लेकिन गुठली से परहेज है। उसके बाद भी भारत चीन को अपने साथ लगातार जोड़ने का प्रयास कर रहा है। लेकिन चीन और भारत के सुर मिलते नही चीन भारत को तभी दोस्त बनाता है। जब उसका गला फंसता है। नही तो कभी चीन भारत को अपने से जोड़कर दोस्ती नही चाहता है। वो इस्तेमाल करना चाहता है।
लेकिन चीन के होश तब उड़े जब भारतीय पीएम मोदी ने 2 सितंबर 2014 को जापान के साथ दोस्ती का हाथ बढाया और जापान ने दुगने उत्साह के साथ भारत के इस कदम को स्वीकार कर भारत को रक्षा से लेकर तकनीक तक की मदद का भरोसा दिलाया ।
उसके बाद हमारे पीएम ने 15 मई 2015 को यात्रा की मित्रता की नींव को मजबुत करने की कोशिश की है। लेकिन एक बार फिर चीन का वही रवैया सामने आ रहा है । जो किसी को शायद रास नही आ रहा। चीन पाकिस्तान की गीदड़ भक्ति से बाज नही आने वाला है। चाहे मसुद अजहर को प्रतिबंधित सुची में डालना हो या फिर एन एस जी का मामला हो भारत के लिए चीन फिर रोड़ा बन सकता है।
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