आखिर क्यों नज़दीक आ रहे है मायावती और सोनिया गांधी


बसपा और कांग्रेस के बीच नया दोस्ताना संबंध विकसित हो रहा है। राज्यसभा चुनाव में यह केमेस्ट्री भाजपा का खेल बिगाड़ रही है। भाजपा ने निर्दलीय और दूसरे दलों के बागियों के बूते कांग्रेसी दिग्गजों की राह पथरीली बनाने की रणनीति बनाई थी। लेकिन मायावती की बदली सियासत से भाजपाई चक्रव्यूह टूटता नजर आ रहा है।
लेकिन बसपा के बदले रुख से सिब्बल को राहत मिलती दिख रही है। बसपा के पास दो प्रत्याशियों को जिताने की क्षमता के बाद भी 12 अतिरिक्त वोट हैं। ये मत अगर सिब्बल को मिलते हैं तो उनकी नैया पार हो सकती है। रालोद के अजित सिंह ने पहले ही सपा और कांग्रेस दोनों को समर्थन का एलान कर रखा है।
सूत्रों के अनुसार भाजपा ने जरूरी वोटों का इंतजाम कर लिया है। भाजपा के वैंकेया नायडू, ओम माथुर, हर्षवर्धन सिंह और आर के वर्मा की राह आसान दिख रही है। हरियाणा में भाजपा समर्थित सुभाष चंद्रा के लिए मुश्किलें पैदा हुई हैं।
 हांलाकि बसपा प्रमुख ने उत्तर प्रदेश में अकेले चुनाव लडने का ऐलान किया है लेकिन नई दोस्ती सीटों पर दोस्ताना संघर्ष के समझौते का रूप ले सकती है। आपसी समझदारी से चुनाव के लिए सेनाएं सजाने की रणनीति संभव है। मायावती अब सपा और भाजपा पर ज्यादा आक्रामक हैं और कांग्रेस के प्रति अपेक्षाकृत नरमी दिखा रही हैं। 
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बसपा और कांग्रेस के बीच नया दोस्ताना संबंध विकसित हो रहा है। राज्यसभा चुनाव में यह केमेस्ट्री भाजपा का खेल बिगाड़ रही है। भाजपा ने निर्दलीय और दूसरे दलों के बागियों के बूते कांग्रेसी दिग्गजों की राह पथरीली बनाने की रणनीति बनाई थी। लेकिन मायावती की बदली सियासत से भाजपाई चक्रव्यूह टूटता नजर आ रहा है।
लेकिन बसपा के बदले रुख से सिब्बल को राहत मिलती दिख रही है। बसपा के पास दो प्रत्याशियों को जिताने की क्षमता के बाद भी 12 अतिरिक्त वोट हैं। ये मत अगर सिब्बल को मिलते हैं तो उनकी नैया पार हो सकती है। रालोद के अजित सिंह ने पहले ही सपा और कांग्रेस दोनों को समर्थन का एलान कर रखा है।
सूत्रों के अनुसार भाजपा ने जरूरी वोटों का इंतजाम कर लिया है। भाजपा के वैंकेया नायडू, ओम माथुर, हर्षवर्धन सिंह और आर के वर्मा की राह आसान दिख रही है। हरियाणा में भाजपा समर्थित सुभाष चंद्रा के लिए मुश्किलें पैदा हुई हैं।
 हांलाकि बसपा प्रमुख ने उत्तर प्रदेश में अकेले चुनाव लडने का ऐलान किया है लेकिन नई दोस्ती सीटों पर दोस्ताना संघर्ष के समझौते का रूप ले सकती है। आपसी समझदारी से चुनाव के लिए सेनाएं सजाने की रणनीति संभव है। मायावती अब सपा और भाजपा पर ज्यादा आक्रामक हैं और कांग्रेस के प्रति अपेक्षाकृत नरमी दिखा रही हैं। 

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