अरीना खान – परिवार का भरण-पोषण करने के लिए अख़बार बाँटती है

छह बहनों और दो छोटे भाइयों का पेट भरने के लिए अरीना खान सुबह तडके ही घर से निकल जाती है पहले ये काम उनके अब्बू करते थे लेकिन अचानक परिवार को रोता पीटता छोड़कर रुखसत हो गये

जयपुर। सुबह होते ही अपने छोटे छोटे पैरो से साइकिल पर पैडल मारती अरीना खान उर्फ़ पारो आपको जयपुर की गलियों में अख़बार बांटती दिख जाएगी, महज़ 9 वर्ष की उम्र में हॉकर बनी अरीना की कहानी किसी के लिए भी प्रेरणास्रोत्र हो सकती है ये राजस्थान की एक मात्र लड़की और एक महिला की कहानी है जो अखबार बांटकर परिवार का भरण-पोषण करती हैं।
महज 9 साल की उम्र से ही अखबार बांट रही अरीना खान घर का खर्च चलाने के साथ पढ़ाई कर रही है, वहीं शिमला खंडेलवाल ने पति द्वारा तिरस्कृत कर घर से निकाल दिए जाने के बाद अखबार बेचकर बेटे को पढ़ाया-लिखाया। आज उनका बेटा चार्टर्ड अकाउंटेंट है।सुबह चार बजते ही एक ओर बापू बाजार के पास अरीना की साइकिल की घंटी ट्रिन-ट्रिन करने लगती है, वहीं दूसरी ओर बड़ी चौपड़ पर शिमला खंडेलवाल न्यूजपेपर की स्टॉल जमाने लगती हैं। दोनों अपने खाते का न्यूजपेपर ले आती हैं और फिर शुरु हो जाता है पिंकसिटी को ताजा तरीन खबरों से रूबरू कराने का सिलसिला।
आज अरीना खान को सभी पारो कहकर बुलाते हैं। 14 साल पहले उसके अब्बू अखबार बांटकर सबका पालन पोषण करते थे। एक दिन अचानक वो अरीना और उसकी मां के अलावा 6 बहनें और दो भाइंयों को हमेशा के लिए छोड़कर इस दुनिया से चले गए। दो बहनों की शादी हो चुकी थी। केवल 9 साल की अरीना के कंधे पर अचानक घर की जिम्मेदारी आ गई थी। अरीना और उसके छोटे भाई ने पिता के कामधाम को आगे बढ़ाया और अखबार बांटने का काम संभाला।अरीना (पारो) सुबह चार घंटे न्यूजपेपर बांटने के बाद पहले स्कूल जाया करती थीं। वह एक स्कूल में पढ़ती थीं, जहां उन्हें देर से स्कूल जाने के लिए काफी डांट पड़ती थी। एक दिन तो उन्हें वहां से निकाल दिया गया। इसके बाद वह अन्य स्कूल में गईं। वहां पारो की समस्या को देखते हुए स्कूल प्रशासन ने उन्हें देर से आने की छूट दे दी। अरीना ने अखबार बांटते हुए स्कूल की पढ़ाई खत्म कर महारानी कॉलेज से ग्रेजुएशन पूरी कर ली है। अब वह अखबार बांटने के साथ सी-स्कीम स्थित एक दफ्तर में कंप्यूटर ऑपरेटर के तौर पर काम करती हैं।अरीना बताती हैं कि शुरुआत में सुबह 3 बजे उठकर साढ़े तीन बजे तक अखबार लेने के लिए पहुंचना चुनौती भरा था। तब पूरा शहर सो रहा होता था। धीरे-धीरे लोगों से जान-पहचान बढ़ी। भाई भी साथ जाने लगा, तब जाकर मन से डर कम हुआ।
जयपुर राजपरिवर के लोग सिटी पैलेस में अरीना के आने का इंतजार करते हैं। सुबह करीब 6 बजे पारो सिटी पैलेस में अनेक न्यूजपेपर्स के साथ पहुंचती है। पारो को इस बात का गर्व है कि वो शहर के बेहद खास हिस्सों तक न्यूजपेपर पहुंचाती है।अरीना के जज्बे को सलाम करते हुए कई संस्थाओं ने सम्मानित किया है। इसमें राजस्थान चेंबर ऑफ एमएसएमई की ओर से सम्मानित किया गया है। इसके अलावा एसएसजी पारीक कॉलेज की ओर से महिला दिवस के मौके पर तमाम प्रतिभाओं के बीच अरीना को सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री अरुण चतुर्वेदी ने सम्मानित किया। इसके अलावा गत दिनों दिल्ली में एक प्राइवेट संस्था की ओर से आयोजित कार्यक्रम में अरीना को देश की टॉप 20 संर्घषशील लड़कियों में शामिल किया गया और सम्मानित किया गया। इस मौके पर रिटायर्ड आईपीएस किरण बेदी और सांसद मेनका गांधी भी मौजूद थीं।
 
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छह बहनों और दो छोटे भाइयों का पेट भरने के लिए अरीना खान सुबह तडके ही घर से निकल जाती है पहले ये काम उनके अब्बू करते थे लेकिन अचानक परिवार को रोता पीटता छोड़कर रुखसत हो गये

जयपुर। सुबह होते ही अपने छोटे छोटे पैरो से साइकिल पर पैडल मारती अरीना खान उर्फ़ पारो आपको जयपुर की गलियों में अख़बार बांटती दिख जाएगी, महज़ 9 वर्ष की उम्र में हॉकर बनी अरीना की कहानी किसी के लिए भी प्रेरणास्रोत्र हो सकती है ये राजस्थान की एक मात्र लड़की और एक महिला की कहानी है जो अखबार बांटकर परिवार का भरण-पोषण करती हैं।
महज 9 साल की उम्र से ही अखबार बांट रही अरीना खान घर का खर्च चलाने के साथ पढ़ाई कर रही है, वहीं शिमला खंडेलवाल ने पति द्वारा तिरस्कृत कर घर से निकाल दिए जाने के बाद अखबार बेचकर बेटे को पढ़ाया-लिखाया। आज उनका बेटा चार्टर्ड अकाउंटेंट है।सुबह चार बजते ही एक ओर बापू बाजार के पास अरीना की साइकिल की घंटी ट्रिन-ट्रिन करने लगती है, वहीं दूसरी ओर बड़ी चौपड़ पर शिमला खंडेलवाल न्यूजपेपर की स्टॉल जमाने लगती हैं। दोनों अपने खाते का न्यूजपेपर ले आती हैं और फिर शुरु हो जाता है पिंकसिटी को ताजा तरीन खबरों से रूबरू कराने का सिलसिला।
आज अरीना खान को सभी पारो कहकर बुलाते हैं। 14 साल पहले उसके अब्बू अखबार बांटकर सबका पालन पोषण करते थे। एक दिन अचानक वो अरीना और उसकी मां के अलावा 6 बहनें और दो भाइंयों को हमेशा के लिए छोड़कर इस दुनिया से चले गए। दो बहनों की शादी हो चुकी थी। केवल 9 साल की अरीना के कंधे पर अचानक घर की जिम्मेदारी आ गई थी। अरीना और उसके छोटे भाई ने पिता के कामधाम को आगे बढ़ाया और अखबार बांटने का काम संभाला।अरीना (पारो) सुबह चार घंटे न्यूजपेपर बांटने के बाद पहले स्कूल जाया करती थीं। वह एक स्कूल में पढ़ती थीं, जहां उन्हें देर से स्कूल जाने के लिए काफी डांट पड़ती थी। एक दिन तो उन्हें वहां से निकाल दिया गया। इसके बाद वह अन्य स्कूल में गईं। वहां पारो की समस्या को देखते हुए स्कूल प्रशासन ने उन्हें देर से आने की छूट दे दी। अरीना ने अखबार बांटते हुए स्कूल की पढ़ाई खत्म कर महारानी कॉलेज से ग्रेजुएशन पूरी कर ली है। अब वह अखबार बांटने के साथ सी-स्कीम स्थित एक दफ्तर में कंप्यूटर ऑपरेटर के तौर पर काम करती हैं।अरीना बताती हैं कि शुरुआत में सुबह 3 बजे उठकर साढ़े तीन बजे तक अखबार लेने के लिए पहुंचना चुनौती भरा था। तब पूरा शहर सो रहा होता था। धीरे-धीरे लोगों से जान-पहचान बढ़ी। भाई भी साथ जाने लगा, तब जाकर मन से डर कम हुआ।
जयपुर राजपरिवर के लोग सिटी पैलेस में अरीना के आने का इंतजार करते हैं। सुबह करीब 6 बजे पारो सिटी पैलेस में अनेक न्यूजपेपर्स के साथ पहुंचती है। पारो को इस बात का गर्व है कि वो शहर के बेहद खास हिस्सों तक न्यूजपेपर पहुंचाती है।अरीना के जज्बे को सलाम करते हुए कई संस्थाओं ने सम्मानित किया है। इसमें राजस्थान चेंबर ऑफ एमएसएमई की ओर से सम्मानित किया गया है। इसके अलावा एसएसजी पारीक कॉलेज की ओर से महिला दिवस के मौके पर तमाम प्रतिभाओं के बीच अरीना को सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री अरुण चतुर्वेदी ने सम्मानित किया। इसके अलावा गत दिनों दिल्ली में एक प्राइवेट संस्था की ओर से आयोजित कार्यक्रम में अरीना को देश की टॉप 20 संर्घषशील लड़कियों में शामिल किया गया और सम्मानित किया गया। इस मौके पर रिटायर्ड आईपीएस किरण बेदी और सांसद मेनका गांधी भी मौजूद थीं।
 

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