तो अब राहुल गांधी चलायेंगें कांग्रेस को


दरअसल जिस राहुल गांधी को मोदी ने पप्पू बना दिया वही राहुल गांधी देश की सबसे पुरानी पार्टी का अब प्रतिनिधित्व करने को तैयार हैं । ये दीगर बात है कि सियासत में आज तक उनको एक भी सफलता न मिली हो वही राहुल गांधी अब कांग्रेस को जीत दिलाने की आखिरी उम्मीद है । और करे भी तो क्या करे कांग्रेस इसके अलावा कांग्रेस में कोई विकल्प बचा नही है । दरअसल कांग्रेस की स्थापना 28 दिसंबर 1885 ए ओ ह्यम ने की थी और इसके पहले अध्यक्ष उमेशचन्द्र बनर्जी बने इसके बाद कांग्रेस के अंदर सारे काम मिशन के तहत शुरू हुए और तमाम अध्यक्षों ने जी जान से काम किया और देश की आजादी में कांग्रेस के योगदान को भूलाया नही जा सकता ।

 लेकिन साल 1928 से कांग्रेस परिवारवाद के गिरफ्त में आने की पहली झलक थी । उस समय इसके अध्यक्ष मोतीलाल नेहरू बने थे । उनके तुरंत बाद मोतीलाल नेहरू के बेटे ने साल 1929 को जवाहर लाल नेहरू ने अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी ली और इसके बाद नेहरु 6 बार काग्रेस के अध्यक्ष बने । जबकि मोतीलाल नेहरु 2 बार बने थे । और कोई अगर गांधी परिवार के अलावा अंतिम बार अध्यक्ष रहा तो वो थे । साल 1997 में सीताराम केसरी इसके बाद तब से कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर सोनिया गांधी बरकरार हैं । और शायद अब तो किसी के लिए ये पद मिल भी नही सकता । ये पद अब कांग्रेस के युवराज यानी राहुल गांधी को मिलेगा । और कोई अब सोच भी नही सकता इस पद के लिए हालांकि जब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने ये कहा कि पार्टी को सर्जरी की जरुरत है । तो उनका इशारा बहुत साफ था कि कोई बदलाव किया जाय़ खासकर आला कमान पर या सीधा सोनिया को इशारा था । कि वो कलेजे पर पत्थर रखकर किसी ऐसे नेता को जिम्मेदारी दें । कि जो पार्टी के विचारधारा को लोगों के सामने ऱख सके । 

बीजेपी का जो मिशन है । कि कांग्रेस मुक्त भारत उस पर नकेल कसी जा सके । लेकिन हुआ उसका बिल्कुल उल्टा जिसको हटाकर ऩये नेता को लाना चाहते थे । दरअसल उसका ही कद और बढा दिया और ज्यादा जिम्मेदारी दे दी जा रही है । तो इसका मतलब बहुत साफ है कि कांग्रेस का आला कमान अपने जमीनी और अनुभवी ऩेताओं की बात शायद सुनता नही है । औऱ शायद उसकी सोच जमीन से मिलती नही । और इसी के नाते काग्रेस मई 2014 से जीत तो दुर की बात है । जहां उसको जीत मिली भी थी वहां से भी उसकी सत्ता गई है। सबसे पहले काग्रेस की सत्ता 28 दिसंबर 2013 को दिल्ली हारी उसके बाद आज तक कांग्रेस को जीत नही मिली है । हालांकि राहुल को जिस मिशन की जिम्मेदारी दी जा रही है ,वो किसी भी हालत में पुरा नही कर सकते । 

क्योंकि जनता के पास कुछ खास है नही बताने को जिससे वो जनता को अपनी ओर खींच सके और विरोधी दल भ्रष्चार का दुसरा नाम कांग्रेस को ही बताया है। दरअसल जिस मिशन के लिए राहुल को कमान देने की कवायद हो रही है । तो वो मिशन है। यूपी फतह करने का और वहां से 5 दिसंबर 1989 से कांग्रेस युपी के सत्ता पर फिर से वापसी नही कर पाई है। और तब से कई सारे प्रयास किये लेकिन यूपी की जनता ने कांग्रेस को अपनी सत्ता नही दी । और अब कांग्रेस पुरी तरह से वेटींलेटर पर है। और जनता को कांग्रेस की बात बिल्कुल भी रास नही आती। तो सवाय ये है कि काग्रेस क्या सिर्फ चुनाव में औपचारिकता पुरी करने के लिए यूपी के चुनाव मे उतरेगी । क्योंकि यूपी के चूनाव में एक सहारा था वो था । प्रशांत किशोर और वो भी आधार अब खत्म होता नजर आ रहा है । 

तो इसके अलावा रास्ता यही होगा कि कांग्रेस चुपचाप अपने आप को जनता के हवाले कर दे और जनता उसको जितनी सीट दे दे उसको अपनी किस्मत मान ले । क्योंकि एक टक्कर सपा और भाजपा मे हैं तो दुसरी तरफ टक्कर होगी बीएसपी और कांग्रेस का देखना ये दिलचस्प होगा कि हाथी को हाथ रोकता है। या फिर हाथ को हाथी कौन किस पर भारी होता है। ये तो चुनाव परिणम आने के बाद ही आप को पता चलेगा लेकिन राजनितिक पंडितों ने जो माना है । कि यूपी चुनाव में राजनितिक पार्टीयां कई सारे दांव खेलने को तैयार है। चाहे पैसे का खेल हो तब भी हर पार्टी पैसे बांटने को तैयार है। और चाहे जातिवाद की राजनिति हो वो भी खेलेने को तैयार है ।

 लेकिन राजनितिक हवा और हकीकत बहुत बड़ा फासला होता है । तो एख बड़ा वाजिब सवाल उठता है । कि आखिर जनता किसके साथ होती है । क्योंकि एक तऱफ विकासवाद होगा जिसका शंख बीजेपी फुक रही तो एक तरफ अब तक किये काम पर वोट मांगने का काम समाजवादी पार्टी कर रही कांग्रेस और बीजेपी के पास वो भी नही है । तो राहुल गांधी भले ही सोनिया गांधी को आराम देने के लिए पार्टी की जिम्मेदारी अपने कंधे पर लेकर यूपी के चुनावी में कुदने के लिए तैयार हो लेकिन ये सोनिया से लेकर हर वोटर को पता है । कि राहुल को हारना ही है। एक समय जिन यूवाओं को अपना आधार माना था कांग्रेस और राहुल गांधी ने वो अब राहुल गांधी को और उनके विचारो से अपनी सहमति नही जताते तो ।मतलब युवाओं से लेकर बुजुर्गों तक का य़ही मानना है कि कांग्रेस को वोट देना वोट की बर्बादी करने के बराबर है । तो कैसे नई जिम्मेदारी के साथ यूपी में अपनी लाज बचायेगें कांग्रेस के युवराज ।
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दरअसल जिस राहुल गांधी को मोदी ने पप्पू बना दिया वही राहुल गांधी देश की सबसे पुरानी पार्टी का अब प्रतिनिधित्व करने को तैयार हैं । ये दीगर बात है कि सियासत में आज तक उनको एक भी सफलता न मिली हो वही राहुल गांधी अब कांग्रेस को जीत दिलाने की आखिरी उम्मीद है । और करे भी तो क्या करे कांग्रेस इसके अलावा कांग्रेस में कोई विकल्प बचा नही है । दरअसल कांग्रेस की स्थापना 28 दिसंबर 1885 ए ओ ह्यम ने की थी और इसके पहले अध्यक्ष उमेशचन्द्र बनर्जी बने इसके बाद कांग्रेस के अंदर सारे काम मिशन के तहत शुरू हुए और तमाम अध्यक्षों ने जी जान से काम किया और देश की आजादी में कांग्रेस के योगदान को भूलाया नही जा सकता ।

 लेकिन साल 1928 से कांग्रेस परिवारवाद के गिरफ्त में आने की पहली झलक थी । उस समय इसके अध्यक्ष मोतीलाल नेहरू बने थे । उनके तुरंत बाद मोतीलाल नेहरू के बेटे ने साल 1929 को जवाहर लाल नेहरू ने अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी ली और इसके बाद नेहरु 6 बार काग्रेस के अध्यक्ष बने । जबकि मोतीलाल नेहरु 2 बार बने थे । और कोई अगर गांधी परिवार के अलावा अंतिम बार अध्यक्ष रहा तो वो थे । साल 1997 में सीताराम केसरी इसके बाद तब से कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर सोनिया गांधी बरकरार हैं । और शायद अब तो किसी के लिए ये पद मिल भी नही सकता । ये पद अब कांग्रेस के युवराज यानी राहुल गांधी को मिलेगा । और कोई अब सोच भी नही सकता इस पद के लिए हालांकि जब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने ये कहा कि पार्टी को सर्जरी की जरुरत है । तो उनका इशारा बहुत साफ था कि कोई बदलाव किया जाय़ खासकर आला कमान पर या सीधा सोनिया को इशारा था । कि वो कलेजे पर पत्थर रखकर किसी ऐसे नेता को जिम्मेदारी दें । कि जो पार्टी के विचारधारा को लोगों के सामने ऱख सके । 

बीजेपी का जो मिशन है । कि कांग्रेस मुक्त भारत उस पर नकेल कसी जा सके । लेकिन हुआ उसका बिल्कुल उल्टा जिसको हटाकर ऩये नेता को लाना चाहते थे । दरअसल उसका ही कद और बढा दिया और ज्यादा जिम्मेदारी दे दी जा रही है । तो इसका मतलब बहुत साफ है कि कांग्रेस का आला कमान अपने जमीनी और अनुभवी ऩेताओं की बात शायद सुनता नही है । औऱ शायद उसकी सोच जमीन से मिलती नही । और इसी के नाते काग्रेस मई 2014 से जीत तो दुर की बात है । जहां उसको जीत मिली भी थी वहां से भी उसकी सत्ता गई है। सबसे पहले काग्रेस की सत्ता 28 दिसंबर 2013 को दिल्ली हारी उसके बाद आज तक कांग्रेस को जीत नही मिली है । हालांकि राहुल को जिस मिशन की जिम्मेदारी दी जा रही है ,वो किसी भी हालत में पुरा नही कर सकते । 

क्योंकि जनता के पास कुछ खास है नही बताने को जिससे वो जनता को अपनी ओर खींच सके और विरोधी दल भ्रष्चार का दुसरा नाम कांग्रेस को ही बताया है। दरअसल जिस मिशन के लिए राहुल को कमान देने की कवायद हो रही है । तो वो मिशन है। यूपी फतह करने का और वहां से 5 दिसंबर 1989 से कांग्रेस युपी के सत्ता पर फिर से वापसी नही कर पाई है। और तब से कई सारे प्रयास किये लेकिन यूपी की जनता ने कांग्रेस को अपनी सत्ता नही दी । और अब कांग्रेस पुरी तरह से वेटींलेटर पर है। और जनता को कांग्रेस की बात बिल्कुल भी रास नही आती। तो सवाय ये है कि काग्रेस क्या सिर्फ चुनाव में औपचारिकता पुरी करने के लिए यूपी के चुनाव मे उतरेगी । क्योंकि यूपी के चूनाव में एक सहारा था वो था । प्रशांत किशोर और वो भी आधार अब खत्म होता नजर आ रहा है । 

तो इसके अलावा रास्ता यही होगा कि कांग्रेस चुपचाप अपने आप को जनता के हवाले कर दे और जनता उसको जितनी सीट दे दे उसको अपनी किस्मत मान ले । क्योंकि एक टक्कर सपा और भाजपा मे हैं तो दुसरी तरफ टक्कर होगी बीएसपी और कांग्रेस का देखना ये दिलचस्प होगा कि हाथी को हाथ रोकता है। या फिर हाथ को हाथी कौन किस पर भारी होता है। ये तो चुनाव परिणम आने के बाद ही आप को पता चलेगा लेकिन राजनितिक पंडितों ने जो माना है । कि यूपी चुनाव में राजनितिक पार्टीयां कई सारे दांव खेलने को तैयार है। चाहे पैसे का खेल हो तब भी हर पार्टी पैसे बांटने को तैयार है। और चाहे जातिवाद की राजनिति हो वो भी खेलेने को तैयार है ।

 लेकिन राजनितिक हवा और हकीकत बहुत बड़ा फासला होता है । तो एख बड़ा वाजिब सवाल उठता है । कि आखिर जनता किसके साथ होती है । क्योंकि एक तऱफ विकासवाद होगा जिसका शंख बीजेपी फुक रही तो एक तरफ अब तक किये काम पर वोट मांगने का काम समाजवादी पार्टी कर रही कांग्रेस और बीजेपी के पास वो भी नही है । तो राहुल गांधी भले ही सोनिया गांधी को आराम देने के लिए पार्टी की जिम्मेदारी अपने कंधे पर लेकर यूपी के चुनावी में कुदने के लिए तैयार हो लेकिन ये सोनिया से लेकर हर वोटर को पता है । कि राहुल को हारना ही है। एक समय जिन यूवाओं को अपना आधार माना था कांग्रेस और राहुल गांधी ने वो अब राहुल गांधी को और उनके विचारो से अपनी सहमति नही जताते तो ।मतलब युवाओं से लेकर बुजुर्गों तक का य़ही मानना है कि कांग्रेस को वोट देना वोट की बर्बादी करने के बराबर है । तो कैसे नई जिम्मेदारी के साथ यूपी में अपनी लाज बचायेगें कांग्रेस के युवराज ।

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