अब मैं गर्व से कह सकता हु मैं शेख हूँ शुभम नहीं-देश के सबसे युवा IAS कभी मजबूरी में छिपाया था धर्म


पुणे। महाराष्ट्र के एक ऑटोचालक के बेटे ने सभी बाधाओं को पार करते हुए यूपीएससी की परीक्षा में सफलता प्राप्त की है। इस 21 वर्षीय मुस्लिम लड़के को धार्मिक भेदभाव के कारण हिंदू पहचान तक बदलनी पड़ी थी। लेकिन आखिरकार उसकी लगन और मेहतन का फल उसे मंगलवार को मिला जब यूपीएससी परिणाम की घोषणा हुई।

परीक्षा परिणाम की घोषणा के बाद से ही एक ऑटोरिक्शा चालक के बेटे और गैराज में काम करने वाले के भाई अंसार अहमद शेख के पास बधाई देने के लिए मित्रों, शुभचिंतकों, मीडियाकर्मियों और यहां तक कि अपरिचितों का भी तांता लगा है और उनकी फोन की घंटी रूकने का नाम नहीं ले रही है।

सूखा प्रभावित मराठवाड़ा क्षेत्र के जालना जिले के शेलगांव गांव के रहने वाले शेख ने इस सफलता को उनके जन्मदिन का अग्रिम तोहफा करार दिया है जो 1 जून को है। उनके एक रोमांचित रिश्तेदार ने पत्रकारों को यह जानकारी दी। महाराष्ट्र के एक ऑटोचालक के बेटे ने सभी बाधाओं को पार करते हुए यूपीएससी की परीक्षा में सफलता प्राप्त की है।

इस 21 वर्षीय मुस्लिम लड़के को धार्मिक भेदभाव के कारण हिंदू पहचान तक बदलनी पड़ी थी। शेख ने जालना जिला स्कूल से अपनी शुरुआती शिक्षा हासिल की। उसके बाद उन्होंने पुणे के फग्र्युसन कॉलेज से 2015 में 73 फीसदी नंबरों के साथ राजनीति विज्ञान में स्नातक की डिग्री हासिल की। उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा में भी इसी विषय को मुख्य विषय बनाया और पहली ही बार में राष्ट्रीय सूची में 361वां रैंक हासिल किया।

वह अन्य पिछड़ा वर्ग श्रेणी से आने के कारण भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) में जाने के हकदार हैं। इस तरह से वे देश के सबसे युवा आईएएस अधिकारी बनने वाले हैं। अपनी मां और अन्य रिश्तेदारों से गले लगे भावुक शेख ने कहा कि मेरा भाई एक गैराज में काम करता है। उसने मुझे हमेशा सहारा दिया। आज जो कुछ मैंने प्राप्त किया है, उसके सहारे के बिना असंभव था।

विडंवना यह है कि जब शेख तीन साल पहले पुणे फग्र्युसन कॉलेज में दाखिला लेने आए थे तो उन्हें अपना सरनेम बदल कर ‘शुभम’ रखना पड़ा था, ताकि बिना किसी की कठिनाई के रहने-खाने का इंतजाम हो जाए। लेकिन अब वे गर्व से अपने मुस्लिम नाम और अल्पसंख्यक पहचान के साथ सांप्रदायिक सद्भाव के लिए काम करना चाहते हैं। शेख कहते हैं कि मैं तीन अलग-अलग श्रेणियों में हाशिये पर था। मैं एक पिछड़े अविकसित क्षेत्र से हूं। मैं एक गरीब घर से हूं और एक अल्पसंख्यक समुदाय से हूं। मैं एक प्रशासक के रूप में इन सभी मुद्दों से निपट सकता हूं, क्योंकि मैंने इसे करीब से देखा है।

वहीं, दिल्ली की लड़की टीना डाबी ने यूपीएससी में पहला स्थान प्राप्त किया। दूसरे स्थान पर रहे जम्मू एवं कश्मीर के 22 वर्षीय आमिर उल सैफी खान। वे शीर्ष 100 सफल उम्मीदवारों में अकेले मुस्लिम उम्मीदवार हैं। यूपीएससी परीक्षा में सफल हुए कुल मुस्लिम उम्मीदवारों में से आधे (17) को नई दिल्ली की एक गैर सरकारी संस्था जकत फाउंडेशन ऑफ इंडिया ने मुफ्त कोचिग हासिल करने में मदद की थी।

एक अशांत परिवार से ताल्लुक रखने वाले शेख कहते हैं कि उनके पिता अहमद ऑटो रिक्शा चलाते हैं और तीन शादियां की हैं। वे उनकी मां को अक्सर पीटा करते थे और उनकी दो बहनों की शादी 14 और 15 साल की उम्र में ही हो गई। हालांकि अपनी मां और भाई की मदद से इन सभी चुनौतियों से पार पाते हुए उन्होंने लगातार 13 घंटे रोजाना पढ़ाई की और पहली ही बार में यूपीएससी परीक्षा में सफल रहे।



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पुणे। महाराष्ट्र के एक ऑटोचालक के बेटे ने सभी बाधाओं को पार करते हुए यूपीएससी की परीक्षा में सफलता प्राप्त की है। इस 21 वर्षीय मुस्लिम लड़के को धार्मिक भेदभाव के कारण हिंदू पहचान तक बदलनी पड़ी थी। लेकिन आखिरकार उसकी लगन और मेहतन का फल उसे मंगलवार को मिला जब यूपीएससी परिणाम की घोषणा हुई।

परीक्षा परिणाम की घोषणा के बाद से ही एक ऑटोरिक्शा चालक के बेटे और गैराज में काम करने वाले के भाई अंसार अहमद शेख के पास बधाई देने के लिए मित्रों, शुभचिंतकों, मीडियाकर्मियों और यहां तक कि अपरिचितों का भी तांता लगा है और उनकी फोन की घंटी रूकने का नाम नहीं ले रही है।

सूखा प्रभावित मराठवाड़ा क्षेत्र के जालना जिले के शेलगांव गांव के रहने वाले शेख ने इस सफलता को उनके जन्मदिन का अग्रिम तोहफा करार दिया है जो 1 जून को है। उनके एक रोमांचित रिश्तेदार ने पत्रकारों को यह जानकारी दी। महाराष्ट्र के एक ऑटोचालक के बेटे ने सभी बाधाओं को पार करते हुए यूपीएससी की परीक्षा में सफलता प्राप्त की है।

इस 21 वर्षीय मुस्लिम लड़के को धार्मिक भेदभाव के कारण हिंदू पहचान तक बदलनी पड़ी थी। शेख ने जालना जिला स्कूल से अपनी शुरुआती शिक्षा हासिल की। उसके बाद उन्होंने पुणे के फग्र्युसन कॉलेज से 2015 में 73 फीसदी नंबरों के साथ राजनीति विज्ञान में स्नातक की डिग्री हासिल की। उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा में भी इसी विषय को मुख्य विषय बनाया और पहली ही बार में राष्ट्रीय सूची में 361वां रैंक हासिल किया।

वह अन्य पिछड़ा वर्ग श्रेणी से आने के कारण भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) में जाने के हकदार हैं। इस तरह से वे देश के सबसे युवा आईएएस अधिकारी बनने वाले हैं। अपनी मां और अन्य रिश्तेदारों से गले लगे भावुक शेख ने कहा कि मेरा भाई एक गैराज में काम करता है। उसने मुझे हमेशा सहारा दिया। आज जो कुछ मैंने प्राप्त किया है, उसके सहारे के बिना असंभव था।

विडंवना यह है कि जब शेख तीन साल पहले पुणे फग्र्युसन कॉलेज में दाखिला लेने आए थे तो उन्हें अपना सरनेम बदल कर ‘शुभम’ रखना पड़ा था, ताकि बिना किसी की कठिनाई के रहने-खाने का इंतजाम हो जाए। लेकिन अब वे गर्व से अपने मुस्लिम नाम और अल्पसंख्यक पहचान के साथ सांप्रदायिक सद्भाव के लिए काम करना चाहते हैं। शेख कहते हैं कि मैं तीन अलग-अलग श्रेणियों में हाशिये पर था। मैं एक पिछड़े अविकसित क्षेत्र से हूं। मैं एक गरीब घर से हूं और एक अल्पसंख्यक समुदाय से हूं। मैं एक प्रशासक के रूप में इन सभी मुद्दों से निपट सकता हूं, क्योंकि मैंने इसे करीब से देखा है।

वहीं, दिल्ली की लड़की टीना डाबी ने यूपीएससी में पहला स्थान प्राप्त किया। दूसरे स्थान पर रहे जम्मू एवं कश्मीर के 22 वर्षीय आमिर उल सैफी खान। वे शीर्ष 100 सफल उम्मीदवारों में अकेले मुस्लिम उम्मीदवार हैं। यूपीएससी परीक्षा में सफल हुए कुल मुस्लिम उम्मीदवारों में से आधे (17) को नई दिल्ली की एक गैर सरकारी संस्था जकत फाउंडेशन ऑफ इंडिया ने मुफ्त कोचिग हासिल करने में मदद की थी।

एक अशांत परिवार से ताल्लुक रखने वाले शेख कहते हैं कि उनके पिता अहमद ऑटो रिक्शा चलाते हैं और तीन शादियां की हैं। वे उनकी मां को अक्सर पीटा करते थे और उनकी दो बहनों की शादी 14 और 15 साल की उम्र में ही हो गई। हालांकि अपनी मां और भाई की मदद से इन सभी चुनौतियों से पार पाते हुए उन्होंने लगातार 13 घंटे रोजाना पढ़ाई की और पहली ही बार में यूपीएससी परीक्षा में सफल रहे।




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