कौन है ज़िम्मेदार जामा मस्जिद की बदहाली के लिए ''बुख़ारी या भिखारी''


हालाँकि यूँ तो कहने के लिए मुग़लों की निशानी दिल्ली की जामा मस्जिद पर हम सब को नाज़ है लेकिन क्या कभी आपने उसकी बदहाली पर भी नज़र डाली है या नहीं! हालाँकि तस्वीरों में जामा मस्जिद को हमेशा साफ़ सुथरा और आलीशान दिखाया जाता है लेकिन जब आप जामा मस्जिद जायेंगे तो आपको उसकी हकीकत पता चलेगी! दूर से देखने में आलीशान दिखने वाली यह जामा मस्जिद के अंदर तक जाना अपने आप में एक जिहाद से काम नहीं है
क्योंकि रोड से लेकर जामा मस्जिद की आखिरी सीड़ी तक हर क़दम पर आपको एक नए रूप का भिखारी देखने को मिलेगा जो आपके कपड़े भी पकड़ सकते हैं और इस बात की भी कोई गारंटी नहीं है कि वो भिखारी पाक है नापाक! या फिर आपको वहां पान या गुटखे के पीक भी देखने को मिल सकते हैं!
जैसे तैसे करके अगर आप जामा मस्जिद के अंदर पहुँच भी गए तो आपको मस्जिद के अंदर कम कपड़े पहने हुए लड़कियां, या फिर कभी-कभी हरी ओम की रुमाल गले में डाले हुए सैलानी भी देखने को मिल जाते हैं! अंदर पहुँच कर अगर आप नमाज़ पढ़ने की सोचें तो आपको दस बार सोचना पड़ेगा की क्या वो होज़ जिस पर बैठकर आपको वज़ू करना है उसका पानी पाक है या नहीं! क्योंकि वहां पाक नापाक हर किस्म का इंसान आपको उस हौज़ में मुंह धुलता हुआ दिखाई देगा!
हालाँकि जामा मस्जिद के शाही इमाम के ताल्लुक़ात हर राजनैतिक पार्टी में हैं लेकिन वो ताल्लुक़ात सिर्फ वोटों का समर्थन देने के लिए हैं न कि जामा मस्जिद के लिए कुछ मदद लेने के लिए!
शाही इमाम कभी हिमायत समिति बनकर अटल बिहारी को समर्थन देते हैं तो कभी कांग्रेस या फिर समाजवादी पार्टी को, और तो और कभी केजरीवाल को समर्थन देकर मुंह की भी खा लेते हैं! अब हम सबको ये सोचना होगा कि क्या जामा मस्जिद सिर्फ़ एक टूरिस्ट पैलेस बनकर रह गयी है जिसके चारों तरफ गन्दगी ही गंदगी दिखेगी जो कि इस्लाम के उसूले के सख़्त ख़िलाफ़ है!
अब हम सबको सोचना होगा कि आखिर जामा मस्जिद की इस बदहाली के लिए कौन ज़िम्मेदार हैं बाहर बैठे हुए भिखारी या हमारे शाही इमाम मौलाना सय्यद अहमद बुख़ारी! या फिर हम लोग खुद ही ज़िम्मेदार हैं जो सब कुछ देखते हुए भी चुप चाप बैठे हुए हैं!
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हालाँकि यूँ तो कहने के लिए मुग़लों की निशानी दिल्ली की जामा मस्जिद पर हम सब को नाज़ है लेकिन क्या कभी आपने उसकी बदहाली पर भी नज़र डाली है या नहीं! हालाँकि तस्वीरों में जामा मस्जिद को हमेशा साफ़ सुथरा और आलीशान दिखाया जाता है लेकिन जब आप जामा मस्जिद जायेंगे तो आपको उसकी हकीकत पता चलेगी! दूर से देखने में आलीशान दिखने वाली यह जामा मस्जिद के अंदर तक जाना अपने आप में एक जिहाद से काम नहीं है
क्योंकि रोड से लेकर जामा मस्जिद की आखिरी सीड़ी तक हर क़दम पर आपको एक नए रूप का भिखारी देखने को मिलेगा जो आपके कपड़े भी पकड़ सकते हैं और इस बात की भी कोई गारंटी नहीं है कि वो भिखारी पाक है नापाक! या फिर आपको वहां पान या गुटखे के पीक भी देखने को मिल सकते हैं!
जैसे तैसे करके अगर आप जामा मस्जिद के अंदर पहुँच भी गए तो आपको मस्जिद के अंदर कम कपड़े पहने हुए लड़कियां, या फिर कभी-कभी हरी ओम की रुमाल गले में डाले हुए सैलानी भी देखने को मिल जाते हैं! अंदर पहुँच कर अगर आप नमाज़ पढ़ने की सोचें तो आपको दस बार सोचना पड़ेगा की क्या वो होज़ जिस पर बैठकर आपको वज़ू करना है उसका पानी पाक है या नहीं! क्योंकि वहां पाक नापाक हर किस्म का इंसान आपको उस हौज़ में मुंह धुलता हुआ दिखाई देगा!
हालाँकि जामा मस्जिद के शाही इमाम के ताल्लुक़ात हर राजनैतिक पार्टी में हैं लेकिन वो ताल्लुक़ात सिर्फ वोटों का समर्थन देने के लिए हैं न कि जामा मस्जिद के लिए कुछ मदद लेने के लिए!
शाही इमाम कभी हिमायत समिति बनकर अटल बिहारी को समर्थन देते हैं तो कभी कांग्रेस या फिर समाजवादी पार्टी को, और तो और कभी केजरीवाल को समर्थन देकर मुंह की भी खा लेते हैं! अब हम सबको ये सोचना होगा कि क्या जामा मस्जिद सिर्फ़ एक टूरिस्ट पैलेस बनकर रह गयी है जिसके चारों तरफ गन्दगी ही गंदगी दिखेगी जो कि इस्लाम के उसूले के सख़्त ख़िलाफ़ है!
अब हम सबको सोचना होगा कि आखिर जामा मस्जिद की इस बदहाली के लिए कौन ज़िम्मेदार हैं बाहर बैठे हुए भिखारी या हमारे शाही इमाम मौलाना सय्यद अहमद बुख़ारी! या फिर हम लोग खुद ही ज़िम्मेदार हैं जो सब कुछ देखते हुए भी चुप चाप बैठे हुए हैं!

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