सुनील कुमार (पत्रकार )
ये लोकतंत्र है, इतिहास गवाह है, जनतंत्र ने हमेशा इसका सम्मान किया है। सम्मान इस बार भी होगा सरकार भी बनेंगी लेकिन किसकी बनेगी यह तो जनतंत्र का मंत्र ही तय करेगा।
भारत के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव 2017 का बिगुल बजने की तैयारी चरम पर है। देश की तीन श्रेष्ठ राजनैतिक पार्टिया भाजपा, सपा और बसपा चुनाव मैदान में एक दूसरे के विजय रथ को रोकने के लिए अपने-अपने महारथियों की फील्डिंग सजाने में लगी हैं। भारतीय जनता पार्टी लोकसभा 2014 में मिली अकाल्पनिक जीत उत्साहित सूखे की मार झेल रहे उत्तर प्रदेश में कमल खिलाने की तैयारी कर रही है।
तो वहीं बसपा 2007 में हाथी का विशाल पेट वोटों से भरने वाली जनता से उम्मीदें लगाए बैठी है। लेकिन चार -चार दिन भूखे रहकर दम तोड़ रहे दलित मतदाता इस बार हाथी का पेट वोटों से भर पाएगें या नहीं । यह तो समय ही बतायेगा।
उधर समाजवादी पार्टी के मुखिया किसानों के इस प्रदेश में धरती पुत्र के नाम से विख्यात मुलायम सिंह यादव को फसलों की बर्वादी पर आत्महत्या कर रहे किसानों के आंसू पुछने के लिए मंथन तो करना ही होगा। बहरहाल नतीजे ज्यों भी हो देश के चौथे स्तम्भ पत्रकारिता के कुछ ख्याति प्राप्त चैनलों ने सर्वे के माध्यम से सरकार बनानी शुरू कर दी है। यहां तक की चार साल पूर्व सत्ता से बहार हुई बसपा को पूर्ण बहुमत दे दिया है।
सर्वो का असर सबके सामने है। चाय के स्टालों से लेकर बस अड्डों व रेलवे स्टेशनों पर यहीं चर्चा है। कि बहिन जी आ रही है। परंतु राजनैतिक मुददों से सरोकार रखने वाला वर्ग दिमाग की हिलाने में लगा है। बहिन जी कैसे आ रहीं है। पिछले चार सालों में बहिन जी ने एक भी दिन चुनाव लड़ने जैसा काम तो एक भी दिन नहीं किया, फिर भी आ रही है।
अंबेडकर जयंती, काशीराम परिनिर्वाण दिवस, स्वयं के जन्म दिन या फिर छात्र रोहित वेमुला की मौत के अलावा बहन जी ने कोई मुददा उठाया हो शायद ही किसी को याद हो। पिछले चार वर्षो में उत्तर प्रदेश में कोई कम अत्याचार नहीं हुए। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले के गम्मन पुरा गांव में तीन सगे भाईयों समेत चार दलितो को जिंदा जमीन में दफन कर दिया गया। तब तो बहन जी नहीं आई अब कैसे आ रही है।
इस बात को सोचकर शायद सभी विपक्षी दल परेशान है। यहां तक कि सूबे के वर्तमान मुख्यमंत्री अखिलेश सिंह यादव तो मीडिया के सर्वे को बिना सिर पैर का बताकर एक बार फिर 2012 के विधान सभा चुनाव में नाबाद 227 सीटों की पारी खेलने का जी तोड़ अभ्यास कर रहे है। लेकिन मीडिया के सर्वे के मुताबिक उन्हे एक बार फिर यह इतिहास दौहराना चुनौती भरा होगा। डबल सेंचुरी को कायम रखने के लिए उनके आगे जो बांधाए आयेगी वह है, ग्रामीण मतदाता।
क्योकि सपा का वोट ग्रामीण आंचलो में अधिक निवास करता है। परंतु युवा मुख्यमंत्री चार साल के शासन में यह भूल गये कि उत्तर प्रदेश गांवो का प्रदेश है। अगर उन्हे याद होता तो शायद आज प्रदेश का किसान बर्वाद फसलों के मुआवजे, बिजली, पानी, कुओं नहरों के लिए सड़कों पर न होता। अगर गरीब को योजनाओं का लाभ मिला होता तो पेंशन, दवा, और रोटी के लिए गरीब मतदाता दम न तोड़ रहा होता। सपा शुरू से ही मुस्लिम मतदाताओं को तुरूप का इक्का समझती रहीं है। लेकिन यह वर्ग पिछले चुनाव पूर्व नौकरियों में 18 प्रतिशत आरक्षण के वादे को पूर न होने का गुब्बार अपने सीने में दबाएं बैठा है।
शायद इसे वह चुनाव में निकाल कर ही कलेजे की आग को ठंडा करे। भारत की सबसे ताकतवर पार्टी भाजपा मीडिया के इस सर्वे को महज एक प्रोपेगंडा बताकर अपने मंझे हुए महारथी पीएम मोदी से ऐसी ही अकाल्पनिक उम्मीद लगाये बैठी जैसी कि 2014 के लोकसभा चुनाव में 80 में से 73 सीटे जीतकर अनौखा कीर्तिमान रचा था। लेकिन मोदी को यह नहीं भूलना चाहिए कि इतिहास अपना दिन होने पर ही बनता है।
चुनाव चेहरो से नहीं काम से जीते जाते है। उदाहरण के तौर पर दिल्ली के पिछले विधान सभा चुनाव में भाजपा ने भारत की प्रथम आईपीएस महिला अधिकारी किरण बेदी को मुखौटा बनाकर चुनाव लड़ा था। जो देश की जनता उनके कीर्तिमानों के सलाम करती थी। लेकिन दिल्ली की जनता ने उनका जो तिरस्कार किया शायद इससे वे कभी ही उभर पाये, लेकिन उन्हे याद रखना चाहिए की मतदाताओं ने उनका नहीं पीएम मोदी द्वारा वादे पूरे न होने का तिरिस्कार किया था। अब उत्तर प्रदेश के राजनैतिक महाकुम्भ के लिए केशव प्रसाद मौर्य को टीम का कप्तान नियुक्त किया है।
वह अपनी टीम को जीत की राह पर कहा तक लेकर जाते है। यह तो चुनाव ही बताऐगा। परंतु बीते लोक सभा चुनाव में मोदी ने रैलियों में जिन भाषणों व नारों से मतदाताओं को लुभानें का काम किया था। जनता अब उन नारों को समझ चुकी है। हर-हर मोदी के स्थान पर अब प्रदेश की जनता बस-बस मोदी अब हटो मोदी कर रही है। सौ दिन के बजाय दो साल में भी काले धन के 15-15 लाख जनता के खाते में आ गये होते तो शायद भाजपा और मोदी के लिए परिस्थतिया कुछ बेहतर हो सकती थी।
लेकिन अब मोदी को समझ लेना चाहिये कि पेट बातों से नहीं रोटी से भरता है। ये लोकतंत्र है, इतिहास गवाह है, जनतंत्र ने हमेशा इसका सम्मान किया है। सम्मान इस बार भी होगा सरकार भी बनेंगी लेकिन किसकी बनेगी यह तो जनतंत्र का मंत्र ही तय करेगा।
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