2015 में बनीं भारत की जानलेवा सड़कें और हर दिन गई 400 लोगों की जान


भारत की सड़कें दुनिया की सबसे घातक सड़कों में शुमार होती हैं. 2015 में इन सड़कों पर होने वाली मौतों की संख्या 5 फीसदी बढ़कर 1.46 लाख हो गई. इसका सीधा सा मतलब ये हुआ है कि यहां की सड़कों पर हर रोज 400 लोगों की मौत होती है यानी हर 3.6 मिनट में एक व्यक्ति सड़क हादसे में अपनी जान गंवा देता है.
छोटे राज्यों में घटा मौत का आंकड़ा
एक तरफ जहां सभी बड़े राज्यों में सड़क दुर्घटना में मारे जाने वाले लोगों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है, वहीं दूसरी तरफ दिल्ली और चंडीगढ़ समेत 10 छोटे राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में गिरावट दर्ज की गई है. 2015 में असम में पिछले साल के मुकाबले 115 मौतें कम दर्ज की गई हैं, जबकि दिल्ली में मौतों की संख्या में 49 की कमी आई है.
सरकारी अभियानों का नहीं हुआ असर 2014 में भारत की सड़कों पर 4.89 लाख लोगों की मौत हुई थी जबकि 2015 में ये आकंड़ा बढ़कर 5 लाख हो गया. साफ है कि केंद्र और राज्य सरकारों की तरफ से रोड सेफ्टी के लिए किए गए प्रयासों का कोई असर नहीं हुआ है. सुप्रीम कोर्ट की तरफ से नियुक्त पैनल भी सड़क दुर्घटनाओं में कमी लाने के लिए प्रयास करने के लिए राज्य सरकारों को लिख चुकी है.
सड़क हादसों में कमी लाने के लिए तैयार होगा रोडमैप ये सरकार की नींद तोड़ने वाले आंकड़े हैं. सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने 2020 तक सड़कों पर होने वाली मौत के आंकड़े को 50 फीसदी तक कम करने का लक्ष्य निर्धारित किया है. सड़क परिवहन मंत्रालय ने अगले हफ्ते राज्य परिवहन सचिवों की बैठक बुलाई है, जिसमें सड़क हादसों में जान गंवाने वालों की संख्या में कमी लाने के लिए एक रोडमैप तैयार किया जाएगा. इसमें ड्राइविंग लाइसेंस जारी करने और वाहनों में सेफ्टी गैजेट्स लगाने जैसी चीजों के लिए कड़े नियम बनाना शामिल होगा.
अलग-अलग राज्यों की पुलिस की तरफ से मिले आंकड़े बताते हैं कि उत्तर प्रदेश में सड़कों पर हुई मृत्यु की संख्या सबसे ज्यादा(17,666) है. इसके बाद तमिलनाडु(15,642), महाराष्ट्र(13,212), कर्नाटक(10,856) और राजस्थान(10,510) आते हैं.
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भारत की सड़कें दुनिया की सबसे घातक सड़कों में शुमार होती हैं. 2015 में इन सड़कों पर होने वाली मौतों की संख्या 5 फीसदी बढ़कर 1.46 लाख हो गई. इसका सीधा सा मतलब ये हुआ है कि यहां की सड़कों पर हर रोज 400 लोगों की मौत होती है यानी हर 3.6 मिनट में एक व्यक्ति सड़क हादसे में अपनी जान गंवा देता है.
छोटे राज्यों में घटा मौत का आंकड़ा
एक तरफ जहां सभी बड़े राज्यों में सड़क दुर्घटना में मारे जाने वाले लोगों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है, वहीं दूसरी तरफ दिल्ली और चंडीगढ़ समेत 10 छोटे राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में गिरावट दर्ज की गई है. 2015 में असम में पिछले साल के मुकाबले 115 मौतें कम दर्ज की गई हैं, जबकि दिल्ली में मौतों की संख्या में 49 की कमी आई है.
सरकारी अभियानों का नहीं हुआ असर 2014 में भारत की सड़कों पर 4.89 लाख लोगों की मौत हुई थी जबकि 2015 में ये आकंड़ा बढ़कर 5 लाख हो गया. साफ है कि केंद्र और राज्य सरकारों की तरफ से रोड सेफ्टी के लिए किए गए प्रयासों का कोई असर नहीं हुआ है. सुप्रीम कोर्ट की तरफ से नियुक्त पैनल भी सड़क दुर्घटनाओं में कमी लाने के लिए प्रयास करने के लिए राज्य सरकारों को लिख चुकी है.
सड़क हादसों में कमी लाने के लिए तैयार होगा रोडमैप ये सरकार की नींद तोड़ने वाले आंकड़े हैं. सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने 2020 तक सड़कों पर होने वाली मौत के आंकड़े को 50 फीसदी तक कम करने का लक्ष्य निर्धारित किया है. सड़क परिवहन मंत्रालय ने अगले हफ्ते राज्य परिवहन सचिवों की बैठक बुलाई है, जिसमें सड़क हादसों में जान गंवाने वालों की संख्या में कमी लाने के लिए एक रोडमैप तैयार किया जाएगा. इसमें ड्राइविंग लाइसेंस जारी करने और वाहनों में सेफ्टी गैजेट्स लगाने जैसी चीजों के लिए कड़े नियम बनाना शामिल होगा.
अलग-अलग राज्यों की पुलिस की तरफ से मिले आंकड़े बताते हैं कि उत्तर प्रदेश में सड़कों पर हुई मृत्यु की संख्या सबसे ज्यादा(17,666) है. इसके बाद तमिलनाडु(15,642), महाराष्ट्र(13,212), कर्नाटक(10,856) और राजस्थान(10,510) आते हैं.

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